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________________ 218 गुणस्थान विवेचन काल अपेक्षा विचार - जघन्यकाल - किसी मुनिराज ने दसवें गुणस्थान से अपनी वीतरागता को उत्तरोत्तर बढ़ाते-बढ़ाते ग्यारहवें उपशांतमोह गुणस्थान में प्रवेश किया और मात्र एक समय उपशांतमोह गुणस्थान में उपशम यथाख्यात चारित्र के साथ पूर्ण वीतरागी तथा पूर्ण सुखी जीवन व्यतीत करते हुए यदि मनुष्य आयु का क्षय होता है तो मरण की अपेक्षा उपशांतमोह गुणस्थान का जघन्यकाल मात्र एक समय घटित हो जाता है। इस तरह एक ही प्रकार से जघन्यकाल घटित होता है। उत्कृष्ट काल - कोई भी महामुनिराज यदि ग्यारहवें गुणस्थान में मरण के बिना पूर्णकाल पर्यंत रहते हैं तो यथायोग्य अंतर्मुहूर्त पर्यंत ही रहते हैं। सभी उपशांतमोही मुनिराजों का ग्यारहवें गुणस्थान का उत्कृष्ट काल समान ही रहता है। यह उत्कृष्टकाल 2 क्षुद्रभव प्रमाण है। लब्धिसार गाथा-३७४। मध्यमकाल - जैसे ग्यारहवें गुणस्थान का जघन्यकाल मरण की अपेक्षा से एक समय जान लिया, वैसे ही मरण की अपेक्षा से ही दो, तीन, चार, पाँच आदि समयों से लेकर यथायोग्य अंतर्मुहूर्त में से एक समय कम काल पर्यंत जितने भी भेद होते हैं, वे सर्व प्रकार - ग्यारहवें गुणस्थान का मध्यमकाल समझ लेना चाहिए / गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - 1. ग्यारहवाँ उपशांतमोह गुणस्थान, उपशमश्रेणी का अंतिम गुणस्थान है / अतः इस ग्यारहवें गुणस्थान से आगे क्षीणमोह आदि गुणस्थानों में उपशांतमोही मुनिराज का गमन नहीं होता है। उपशमक मुनिराज की उपशांतमोह गुणस्थान पर्यंत ही विकसित होने की पर्यायगत योग्यता रहती है। जैसे - खिलाड़ी गेंद को ऊपर से ठप्पा लगाकर आकाश में उछालता है / गेंद को ऊपर से जब ठप्पा लगाता है तब ही गेंद कितनी ऊपर आकाश में उछलेगी यह उसकी सामर्थ्य निश्चित होती है।
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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