________________ 168 गुणस्थान विवेचन ___ उत्कृष्ट काल - यदि अप्रमत्तसंयत गुणस्थानवर्ती मुनिराज का मरण नहीं होता है तो वे यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत इस सातवें गुणस्थान में रहते हैं / सातवें गुणस्थान का उत्कृष्ट काल यथायोग्य अंतर्मुहूर्त है। प्रमत्तसंयत गुणस्थान के अन्तमुहूर्त काल से अप्रमत्त गुणस्थान का काल नियम से आधा होता है। मध्यम काल - छठवें गुणस्थान से ऊपर अप्रमत्तसंयत में जाने की अपेक्षा तथा अपूर्वकरण गुणस्थान से नीचे अप्रमत्तसंयत में आने की अपेक्षा भी विचार करते हैं और मरण की विवक्षा से भी सोचते हैं तो दो, तीन, चार आदि समयरूप काल से लगाकर यथायोग्य अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत बीच के जितने भी भेद हैं; वे सब अप्रमत्तसंयत के मध्यम काल के ही भेद हैं। गमनागमन अपेक्षा विचार - गमन - 1. सातिशय अप्रमत्तसंयत मुनिराज का ऊपर की ओर गमन मात्र अपूर्वकरण गुणस्थान में ही होता है। 2. स्वस्थान अप्रमत्तसंयत मुनिराज का गमन नीचे प्रमत्तसंयत गुणस्थान में ही होता है। 3. यदि उपशमश्रेणी से नीचे पतन काल में कोई मुनिराज अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में आये हैं तो उनका गमन भी प्रमत्तसंयत गुणस्थान में ही होता है। ___4. छठवें से सातवें में आये हों अथवा आठवें से सातवें गुणस्थान में आये हों तो भी यदि ध्यानमग्न मुनिराज का शुद्धोपयोग के काल में ही मरण हो जाता है तो उन मुनिराज का गमन विग्रहगति के प्रथम समय से ही चौथा अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान हो जाता है। ___ आगमन - 1. सादि या अनादि मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज का मिथ्यात्व से सीधे अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में आगमन हो सकता है। 2. अविरतसम्यक्त्व गुणस्थानवर्ती द्रव्यलिंगी मुनिराज का सीधे अप्रमत्तसयंत गुणस्थान में आगमन संभव है।