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________________ 160 गुणस्थान विवेचन समाधान - यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्म और परिग्रह इन पाँच पापों से विरतिभाव को संयम कहते हैं, जो कि तीन गुप्ति और पाँच समितियों से अनुरक्षित हैं। वह संयम वास्तव में प्रमाद से नष्ट नहीं किया जा सकता है; क्योंकि संयम में प्रमाद से केवल मल की ही उत्पत्ति होती है। ____15. शंका - छठवें गुणस्थान में संयम में मल उत्पन्न करनेवाला ही प्रमाद विवक्षित है, संयम का नाश करनेवाला प्रमाद विवक्षित नहीं है, इस बात का कैसे निश्चय किया जाय? समाधान - छठवें गुणस्थान में प्रमाद के रहते हुए संयम का सद्भाव अन्यथा बन नहीं सकता है, इसलिये निश्चय होता है कि यहाँ पर मल को उत्पन्न करनेवाला प्रमाद ही अभीष्ट है। दूसरे छठवें गुणस्थान में होनेवाला स्वल्पकालवर्ती मन्दतम प्रमाद संयम का नाश भी नहीं कर सकता है; क्योंकि सकलसंयम का उत्कटरूप से प्रतिबन्ध करनेवाले प्रत्याख्यानावरण के अभाव में संयम का नाश नहीं पाया जाता। 16. शंका - पांच भावों में से किस भाव का आश्रय लेकर यह प्रमत्तसंयत गुणस्थान उत्पन्न होता है ? समाधान - संयम की अपेक्षा यह गुणस्थान क्षायोपशमिक है। 17. शंका - प्रमत्तसंयत गुणस्थान क्षायोपशमिक किसप्रकार है ? समाधान - क्योंकि वर्तमान में प्रत्याख्यानावरण के सर्वघाती स्पर्धकों के उदयक्षय होने से और आगामी काल में उदय में आनेवाले सत्ता में स्थित उन्हीं के उदय में न आनेरूप उपशम से तथा संज्वलन कषाय के उदय से प्रत्याख्यान (संयम) उत्पन्न होता है, इसलिये क्षायोपशमिक है। ___18. शंका - संज्वलन कषाय के उदय से संयम होता है, इसलिये उस औदयिक नाम से क्यों नहीं कहा जाता है ? समाधान - नहीं; क्योंकि संज्वलन कषाय के उदय से संयम की उत्पत्ति नहीं होती है। 19. शंका - तो संज्वलन का व्यापार कहाँ पर होता है? समाधान - प्रत्याख्यानावरण कषाय के सर्वघाती स्पर्धकों के
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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