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________________ देशविरत गुणस्थान 131 ___दोहे में व्यक्त तीन विशेषताओं में प्रथम दो अर्थात् संयम और भोगों से अरुचिरूप विरक्तता का भाव तो वीतरागतारूप अर्थात् निश्चयधर्मरूप है और प्रतिज्ञा ग्रहण करने का परिणाम शुभभावरूप औदयिकभाव है। पहली प्रतिमा का नाम दर्शनप्रतिमा है और ग्यारहवीं प्रतिमा का नाम उद्दिष्टत्यागप्रतिमा है। इन दोनों प्रतिमाओं के बाह्य त्याग में अंतर तो बहुत है; तथापि दोनों का गुणस्थान पाँचवां ही है; क्योंकि दोनों में दो कषाय चौकड़ी का ही अनुदय है। दर्शनप्रतिमाधारी आत्मानुभवी सम्यग्दृष्टि श्रावक मूलगुणों में तथा सप्त व्यसन के त्याग में अतिचार नहीं लगाता। देवपूजा आदि षट् कर्मों का पालन करता है। वह माता-पिता, भाई-बहिन, पत्नी तथा बालबच्चों के साथ घर में रहता है; नीति-न्यायपूर्वक व्यापारादि आरंभ कार्य है; परिणामों में उत्साह नहीं होने पर भी भूमिका के अनुसार लौकिक व्यवहार में अनेक प्रकार के सुंदर कपड़े पहनता है; अपनी परिणामों की कमजोरी तथा पुण्योदयानुसार अल्प या अधिक परिग्रह भी रखता है। __ ग्यारहवीं प्रतिमाधारी उत्कृष्ट श्रावक क्षुल्लक और ऐलक तो नियम से घर छोड़कर दिगम्बर मुनिराज के संघ के साथ वन-वसतिका आदि में निवास करते हैं। व्यापारादि अशुभोपयोगरूप आरभ-परिग्रह के सर्वथा त्यागी हैं; धन रखने का भाव भी उनके मन में नहीं आता है; उद्दिष्ट रहित दिन में एक बार ही भिक्षावृत्ति से प्रासुक भोजन करते हैं; दूध, पानी आदि पेय भोजन के समय ही लेते हैं; अन्य समय में नहीं। क्षुल्लक दो-खंड वस्त्र तथा कौपीन और ऐलक मात्र एक कौपीन का ही उपयोग करते हैं। ___ पूर्वोक्त प्रकार पहली और ग्यारहवीं प्रतिमाधारी श्रावक के बाह्य जीवन में बहुत बड़ा अंतर होने पर भी दोनों के मात्र दो ही कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक वीतरागता है; अत: दोनों पंचम गुणस्थानवर्ती ही हैं। 49. प्रश्न : पहली प्रतिमाधारी और क्षुल्लक-ऐलक ग्यारहवीं प्रतिमाधारी - इन दोनों की व्यक्त वीतरागता/शुद्धि/धर्म एक समान ही है या कुछ भेद भी है ?
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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