________________ करता है तो उसे मूर्खतापूर्ण खेल कहा जाएगा / (2) यदि वह क्रीडावश करता है तो उसे बालक कहा जाएगा / (3) यदि वह दयावश ऐसा करता है तो वह सब को सुखी बनाए और सब के लिए सुख साधनों का निर्माण करें / ऐसा करते नहीं है, इस से उसमें दया की त्रुटि महसूस होती है / (4) यह कहा जाता है कि "ईश्वर तो न्यायाधीश है / अतः वह जीव के अपराधों का दंड देने के लिए दुःख के साधनों की रचना करता है / " अब यहां प्रश्न खड़ा होता है कि, - यह सब कुछ करने की क्षमतावाला ईश्वर तो सर्व - शक्तिमान गिना जाए, और उसे दयावान तो माना ही गया है, तो वह ईश्वर जीव को अपराध ही क्यों करने देता है? जिसके फलस्वरुप उसे बाद में दंड देना पडे? यदि पुलिस अपनी आँखों के सामने ही किसी को दूसरे की हत्या करते हुए देखती रहे, तो वह पुलिस भी अपराधी गिनी जाएगी / तब क्या ईश्वर को अपराधी गिनेंगे? अथवा क्या ऐसा मान लेंगे कि सर्वशक्तिमान ईश्वर के पास अपराधी को रोकने की शक्ति नहीं है? या क्या 'वह निर्दय है' ऐसा माना जाए?' इसके अतिरिक्त कुछ और भी प्रश्न उपस्थित होते हैं :(1) यदि ईश्वर विश्व का निर्माण व संचालन करता है तो यह सब कुछ कहां बैठकर करता है?