________________ मार्ग- साधनायोग्य काल में ला देती है / (4) बाद जीव के कर्म जीव को आराधना की सामग्री से संपन्न मनुष्यभव में ला देते हैं | अब यहाँ (5) अंतिम कारण चारित्रधर्म का जीव का 'पुरुषार्थ' जीव को आगे आगे बढ़ाकर मोक्षतक पहुँचाता है / अब यहाँ पूछा जाए की चारित्रधर्म क्यों नहीं लेते हो? इसका अगर उत्तर करें कि-'हमारा पुण्यकर्म का उदय नहीं है, तो यह झूठा उत्तर है / कहना चाहिए कि 'हमारे पुण्यकर्मने तो हमें यहाँ तक ला दिया है, अब पुरुषार्थ करेंगे तभी धर्म होगा / ' मुख्यतया संसार के विषय में शुभाशुभ कर्म काम करते हैं, जब कि धर्म के विषय में पुरुषार्थ काम करता हैं / धर्म एक वृक्ष है: इसका बीज सत्प्रशंसादि___ अगर आत्मा में किसी भी दानादि या क्षमादि धर्म का पाक निपजाना है, तो पहले उस धर्म के बीज बोने चाहिए / 'बीजं सत्प्रशंसादि'- बीज है उस धर्म की निर्माय (माया रहित) सम्यक् प्रशंसा-आकर्षण-अहोभाव / तपस्वी का जुलुस देखकर लोग प्रशंसा करते है-'अहो ! कैसा तपस्वी !' यह प्रशंसा उन लोगों के दिल में तप-धर्म का बीज बोती है / बाद में उस धर्म की चिन्ता-अभिलाषा, धर्म का शास्त्रश्रवण, एवं धर्मप्रवृत्ति का अभ्यास (प्रेक्टिस) होती है / यह सब बीज पर अंकुर-नाल-पत्र-पुष्प है / अन्त में 'फलपाक' के रूप में वह धर्म सिद्ध होता है / 2 348