________________ को धन नहीं, 'परन्तु इस समय विद्यमान शेष धन की मात्रा के आधार पर कहा जायगा कि मेरे पास इतना धन है / ' इसी प्रकार किसी की देखरेख अधीनता समाज में दिए गए धन के आधार पर नहीं, किन्तु अपने स्वामित्व के आधार पर कहा जा सकता है कि 'मैं सहस्त्रपति हूं, लखपति हुँ' आदि / यह ऋजुसूत्र नय का ज्ञान हैं / (5) शब्द (सांप्रति) नयः- इससे भी गहराई में जाकर शब्द नय वस्तु को जब तक वह समान लिंग 'वचन - वाली होती है तब तक ही उस रूप में जानता है / लिंग और वचन के भिन्न होने पर वस्तु भी भिन्न हो जाता है ऐसा मानता है / जैसे कि घडा, कलश और कुंभ समान वस्तु है / घड़ी, लुटिया गागर ये इनसे पृथक् वस्तुएँ है / प्रसंगवश इस विवक्षा से भिन्न स्वरूप का बोध अथवा व्यवहार होता है और वह शब्दनय का विषय है / जैसे कि यह पत्नी नहीं, दार है, क्योंकि पुरूष जैसी है / 'इसी प्रकार घटी या छोटा घट (या घड़ा) ही है / तो भी कहा जाता है' यह घड़ा क्यों लाए? मुझे तो घटी की जरूरत है / (6) समभिरूढ नय :- इस नय की मान्यता है कि वस्तु में अभी या पहले - पीछे शब्दार्थ घटित होता हो, तभी उसे वस्तु के रूप में स्वीकृत किया जाय / उदाहरणतः किसी बालक का इन्द्र नाम रखा हैं, परन्तु वह वास्तविक इन्द्र नहीं / यथार्थ इन्द्र तो देवताओं का स्वामी है, क्योंकि 'इन्द्र' शब्द का अर्थ है 'इन्दन युक्त' 22 3278