________________ हो, उसे 'भाव-श्रावक' कहते हैं / 'भाव श्रावक' बनने के लिए / (1) आचरण में 6 क्रियागत लक्षण गुण)' तथा (2) हार्दिक भाव में 17 'भावगत लक्षण (गुण) आवश्यक हैं / वे ये हैं, - भाव-श्रावक के 6 क्रियागत गुणः- (1) कृतव्रत-कर्मा, (2) शीलवान, (3) गुणवान, (4) ऋजु-व्यवहारी, (5) गुरु-शुश्रूषु, और (6) प्रवचन-कुशल / इनमें से प्रत्येक के जनक-समर्थक अवान्तर अनेक गुण है, जैसे कि 1. कृत व्रतकर्मा का आराधक बनने के लिए - (i) व्रतधर्म-श्रवण (ii) सुनकर व्रत के प्रकार, अतिचार आदि की जानकारी (iii) पूरे अथवा अल्पकाल के लिए व्रतधर्म का स्वीकार और (iv) रोग या विघ्न में भी दृढता पूर्वक धर्मपालन / इन चारों में उद्यमी होने वाला वह व्यक्ति कृतव्रत-कर्मा कहलाता है / 2. शीलवान यानी चारित्रवान बनने के लिए - (i) आयतन-सेवन अर्थात् सदाचारी, ज्ञानी तथा सुंदर श्रावक धर्म के पालन करनेवालें साधर्मिको के सानिध्य में ही रहना, क्योंकि इससे दोषो में कमी तथा गुणो में वृद्धि होती रहती है / (ii) बिना काम दूसरों के घर नहीं जाना (इस में भी दूसरे घर में अकेली स्त्री हो तो वहां बिल्कुल नहीं जाना / क्योंकि कामासक्ति या कलंक लगने कि संभावना है / (iii) कभी भी उद्भट यानी औचित्यहीन वेष धारण नहीं करना / SE 27068