________________ मोक्षमार्ग : मार्गानुसारी के 35 गुण - जीव अनादि काल से संसार में भटक रहा है, इस में अनंत पुद्गल परावर्त काल व्यतीत हो चुके / अब जब मोक्ष पाएगा उसके पहले वह अपने संसार के जिस अंतिम पुद्गल परावर्त काल में आएगा इसे 'चरमावर्तकाल' कहा जाता है / ___ जीव दो प्रकार के है, -1 भव्य, और 2 अभव्य / अभव्य वह है जो मोक्षप्राप्ति के बिलकुल अयोग्य है / अतः अभव्य का कभी मोक्ष ही नहीं, तो उसका चरमावर्त काल भी होता नहीं / भव्य जीव का चरमावर्त काल होता है / भव्य वह है जिसे 'मैं भव्य हूँ या नहीं?' ऐसी शंका भी हो / ऐसे भव्य को जब चरमावर्त काल प्राप्त होता है तभी यानी चरमावर्त काल में ही अपनी आत्मा पर दृष्टि जाती है; तभी मोक्षदृष्टि व धर्मरुचि आती है; अचरमावर्त काल में नहीं / जीव अलबत्ता; अचरमावर्त में कष्टमय चारित्र भी लेता है, पालता है, किन्तु वह संसारसुख के आशय से ही / मोक्ष के लिए धर्म तो चरमावर्त काल में ही होता है / यहाँ भी सर्वज्ञ कथित शुद्ध धर्म चरमावर्त के पूर्वार्द्ध में नहीं, किन्तु उत्तरार्द्ध में ही प्राप्त होता है / सर्वज्ञ कथित शुद्ध धर्म है सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र / वही सही मोक्षमार्ग है / ___ सम्यग्दर्शन प्राप्त करने के लिए मार्गानुसारी के 35 गुण बहुत उपयोगी हैं / ऐसा समझे कि अपनी आत्मा एक क्षेत्र है ! इसमें सम्यग्दर्शन स्वरूप मोक्षबीज बोना है, जिससे आगे जा कर हमें 2 2278