________________ सम्यग्दर्शन की उच्च कोटि की साधना, तथा (3) संसार के कर्मपीड़ित समस्त जीवों का मैं कैसे उद्धार करूं 'ऐसी करूणाभावना। अरिहंत बननेवालें जीवन में बड़ी राजऋद्धि, वैभव आदि को तिलांजलि देकर हिंसादि सर्व पापमय प्रवृत्ति के त्याग रूप चारित्र जीवन का स्वीकार करते हैं / तत्पश्चात् कठोर संयम, तपस्या और ध्यान की साधना के साथ उपसर्ग-परिषह को सहन करते हैं / इनके द्वारा ज्ञानावरणादि चार घाती कर्मो का नाश करके वीतराग सर्वज्ञ बनते हैं / पूर्व की प्रचंड साधना से उपार्जित तीर्थंकर नामकर्म का पुण्य यहाँ उदय में आता है / वे अरिहंत होते है,यानी अष्ट प्रतिहार्य की शोभा के योग्य होते हैं, एवं अन्य असाधारण विशिष्टता वालें, जैसे कि चलते समय देवनिर्मित नौं सुवर्ण-कमल पर चलने वालें, सुरेन्द्र-नरेन्द्रों से पूजित, देवरचित समवसरण पर धर्मदेशना देनेवालें ... इत्यादि स्वरूप होते हैं / अरिहन्त धर्मशासन की स्थापना करते हैं, तथा साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं | बाद पृथ्वी पर विचरण करते करते धर्मप्रचार करते रहते हैं / क्रमशः आयु की समाप्ति पर शेष 'वेदनीय' आदि 4 अघाती कर्मो का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करते हैं / तब वे सिद्ध हो जाते हैं। अरिहंत अवस्था में 4 घाती कर्मके क्षय के कारण 4 गुण होते हैं और सिद्ध -अवस्था में 4 घाती + 4 अघाती = आठों कर्म के 2 1748