________________ प्रताप से | अशुभ ध्यान के दो प्रकार है- (1) आर्तध्यान, व (2) रौद्रध्यान / इन दोनों में से प्रत्येक के चार-चार प्रकार है / इन्हें चार पाये भी कहे जाते है / आर्तध्यान में (i) इष्ट संयोग कैसे प्राप्त हो, अथवा वियोग प्राप्त इष्टसंयोग कैसे बना रहें, जाए नहीं, यानी इस का न हो, इस बात का एकाग्र चिंतन / (ii) अनिष्ट का वियोग कैसे हो, या अनिष्ट किस प्रकार न आए, इस बात का तन्मय चिन्तन / (iii) वेदनाव्याधि के नाश और उसके उपचार का एकाग्र चिंतन / (iv) निदान अर्थात् पौद्गलिक सुखों की चोटभरी आशंसा (उत्कट अभिलाषा) / रौद्रध्यान में (i-ii-iii) हिंसानुबन्धी-मृषानुबन्धी-स्तेयानुबन्धी ध्यान होता है अर्थात् हिंसा, झूठ तथा चोरी (अनैतिक लूट आदि) करने के विषय में क्रूर चिन्तन यह रौद्रध्यान है / (iv) संरक्षणानुबंधी शुभ ध्यान के दो प्रकार हैं-(१) धर्मध्यान, और (2) शुक्लध्यान | धर्मध्यान के चार प्रकार हैं - आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय व संस्थानविचय धर्मध्यान है / ___(1) आज्ञा-विचय,- 'जिनाज्ञा, जिन-वचन कितना अद्भुत ! कैसा लोकोत्तर ! व कैसा सर्वजीव-हितकर ! कैसा अनंत कल्याणदायी हैं !' 21438