________________ आदि परिवर्तन होते हैं / ___यदि आत्मा निरंतर वैराग्य, जिनवचन-रुचि, दया, दानादि, देवगुरु सेवा, क्षमादि, विरतिभाव... आदि में रहे तो नूतन पुण्य का बंध तो अवश्य होता ही हैं, उपरान्त कुछ पुराने अशुभ कर्मो का शुभ पुण्यकर्म में संक्रमण भी हो जाता है, अशुभ के रस में अपवर्तना होती है, शुभ के रस में उदवर्तना होती है / इत्यादि इत्यादि सत् परिवर्तन होते हैं / यह लाभ के अलावा उस समय, अशुभ भाव से जो अशुभ फल उत्पन्न होने वाले थे, उन से बच जाते हैं / अशुभ भाव में इससे विपरीत प्रक्रिया होती है / शुभ भाव के ऐसे अनुपम लाभ को दृष्टि सन्मुख रखते हुए हृदय के भावों को सदा पवित्र और उच्च कोटि के शुभ रखना जरूरी है / इसी शुभ भाव की रक्षा के लिए बन सके उतनी शुभ करणी, सद्वाणी और शुभ विचारणा में रहना हितकर है / ___ आठ कर्मो की 120 उत्तर प्रकृतियाँ :___ (1) ज्ञानावरण 5:- वस्तु को विशेष रूप से जानना देखना यह ज्ञान है, जैसे कि यह मनुष्य है, पशु नहीं / सामान्य रूप से देखना यह दर्शन है, जैसे कि 'यह भी मनुष्य है / ' ज्ञान 5 है, मतिज्ञान, श्रुतिज्ञान आदि / इनके 5 आवरण है, - मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, 0 1158