________________ करना और यह भाव रखना कि 'जैसे नदी घास को खींच जाती है, वैसे इन्द्रिय आदि आश्रव जीव को उन्मार्ग और दुर्गति की ओर घसीटकर ले जाते हैं / इन्द्रियादि आश्रवों के कारण कितने ही कई का बंध होता रहता है, अतः अब इन आश्रवों को छोड, शक्य त्याग करें / ' लाम 8. संवर - एक एक संवर के महालाभो पर विचार कर यह सोचना कि 'अहो ! आश्रव-विरोधी समिति, गुप्ति, यतिधर्मादि संवर कितने सुंदर हैं / इनका सेवन करके कर्म बंधन से बचूं / ' / 9. निर्जरा - बारह प्रकार के तपों में एक-एक तप का लाभ सोचकर यह विचार करना कि 'पराधीनता व अनिच्छा से सहन की गयी पीड़ा द्वारा अधिक कर्मो की निर्जरा नहीं होती, किन्तु स्वेच्छा से किये गये बाह्य-आभ्यन्तर तप से बहुत अधिक कर्मो की निर्जरा होती है / मैं ऐसे अलौकिक तप की आराधना करुं / ' ___ 10. लोक स्वभाव - इस भावना के अन्तर्गत जीवों व पुद्गलों आदि से व्याप्त अधो-मध्य-उर्ध्वलोक के स्वरूप का विचार करना चाहिए / लोक के भाव, उत्पत्ति, स्थिति, नाश संसार, मोक्ष...आदि का चिंतन करके तत्त्व ज्ञान तथा वैराग्य की वृद्धि करें / 11. बोधिदुर्लभ - इस बात पर विचार करना चाहिए कि, "चारों गति में भटकते भटकते हुए अनेक दुःखों में निमग्न होते हुए तथा अज्ञान आदि से पीड़ित रहते हुए जीव को बोधि अर्थात् जैनधर्म की 21038