________________ दो - तीन वर्षों का पाठ्यक्रम नियत कर इस पुस्तक को पाठशालाओं में पढ़ाया जा सकता है / वयोवृद्ध जैन भी इस पुस्तक के गहन अभ्यास द्वारा अपने धर्म के विषय में अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं | आज अनेक जैनेतर बन्धु भी जैन धर्म समझने के लिये उत्सुक हैं या तत्त्व के जिज्ञासु हैं / यह पुस्तक ऐसी है कि इसके द्वारा उन्हें जैन धर्म के विविध अंग सरल भाषा में संक्षिप्त अध्ययन से समझ में आ सकते हैं / यह उन्हें दी जा सकती है / गुरुगम के माध्यम से अभ्यास करने पर अच्छे से अच्छा बोध प्राप्त हो सकता है / इस पुस्तक को पढ़ने से लाभः- पढ़ने वाले को सर्व प्रथम लाभ यह है कि उसको इस बात का भान होगा कि जैनधर्म में सिखाए जाने वाले तत्त्व कितनी अधिक मात्रा में गम्भीर अर्थ वाले, अद्वितीय और असाधारण हैं तथा कैसी मार्गसूचक विशेषताओं से सम्पन्न है / इससे मानवजीवन की इतिकर्तव्यता का भी ज्ञान होता है / दूसरा लाभ यह है कि आर्य संस्कृति जैन धर्म और इसके शासन संस्थापक तीर्थंकर भगवान के प्रति असीम सन्मान उत्पन्न होगा वह उत्तम रीति से जीवन व्यतीत करने में उपयोगी सिद्ध होगा, साथ ही यह भी समझ में आ जायेगा कि भौतिक विज्ञान की अपेक्षा आध्यात्मिक ज्ञान कितना बढ़िया, जीवन में सच्ची शांति, स्फूर्ति तथा समृद्धि प्रदान करने वाला और भव्य तत्त्वदृष्टि दायी है / गुरु के माध्यम से इस दोहन ग्रन्थ का अध्ययन अतीव लाभदायी