________________ (73) // यह स्तवन // संध्यासमय निरंतर पवित्रहोकर गुणे या सुणे सुचअदरसे तो सर्वउपजवमिटे महामंगलहोवे // // अथ अट्ठाईसलब्धितपस्तवनं लिख्यते // ॥हा // प्रणमुं प्रथमजिनेसरु / शुधमनें सुखकार / खबधिअगवीसजिनकही / आगमनें अधिकार // 1 // प्रश्नव्याकरणेप्रगट, जगवतीसूत्रमकार / पन्नवणा श्रावस्यके / बारू लबधिविचार // 2 // आंबिलतपकरऊपजे / लवध्यां अचवीस / तेहिव परगटअरथसुं / सांजलज्यो सुजगीस // 3 // ढाल 1 सफलसंसारनी // अनुक्रमे हेव अधिकारगाथातणें / लबधिना नाम परिणामसरिखानणे / रोगसहुजाय जसु अंगफरस्यांसही। प्रथम ते लबधि नाम श्रामोसही // 4 // जासु मलमूत्र उषधसमाजाणीये / बीयविप्पोसहीलबधिवखाणीये। श्लेषमषधिसारिखो जेहनो / तीजीखेलोसही नाम तेहनो ॥५॥देहना मैलथी कोढदूरेहुवे / चोथीजबोसहीनामतेहनोउवे / केशनखरोमसदुअंगफरसेसही रहेनहींरोग सम्बोसहीतेकही॥६॥ एकइंजियकरी पांचजियतणा / नेदजाणे तिका नामसंजिन्नणा बस्तुरूपीसहूजाणिये जिणकरी / सातमीलबधिते अवधि ज्ञानेकरी // 7 // // ढाल 2 आव्यो तिहानरहर एचाल / ॥हिव आंगुलअढीये ऊपो मानुषक्षेत्र / संझीपंचेंजी तिहां जेवसयविचित्र / तसुमननो चिंतितजाणेथूल प्रकार / ते शजुमतिनांमें श्राठमीलबधिविचार // // संपूरणमानुषदेने संज्ञावंत / पंचेजियजे तसुमनवातां तंत / सूखमपरजायें जाणे सहु