________________ (36) हरो एकआधार / तारणतरण में त्रिकरणसुद्धे अरिहंत लाधो। हिव संसार घणोलमिवो तो पुद्गलाधो // 35 // तूं मनवंवितपूरण आपदचूरणसामी / ताहरी सेवलहीतो में नवनिध सिधपामी / अवर न कांईश्वं इणनव तुहीजदेव / सूधे मन एक होयजो नव नव ताहरीसेव // 33 // कलश / श्म सकलसुखकर नगरजेशलमेर महिमादिनदिनें / संवत्तसतरेजगणतीसे दिवसदीवालीतणें / गुणविमलचं समान वाचक विजयहरष सुसीसए / श्रीपासना गुण एमगावे धरमसी सुजगीस ए // 34 // इति श्रीचौवीसदंगकस्तवनं संपूर्णम् // // अथ श्री इरियावही मिच्छामिदुक्कड संख्या स्तवनं लिख्यते // // * प्रभु प्रणमुंरपासजिणेसरथंभणो ए देशी // पदपंकजरे प्रणमी वीरजिनंदना / त्रिकरणसुधरे करि मुनिवरपयवंदना / मत्तैरे पमिकमी जिमरियावही / श्रीवीरनी रे वाणी तहत्तकरि सरदही / उबालो / सरदहीवाणी मन सुहाणी चित्त आणी तेवली / मिलामिछक्कातणी संख्या कहि सुं जिमकही केवली / नूदगजलण तिम वान वणसई विगल पणइंशी तणी / करतांविराहण करमबंध्या दूर ते करिवाजणी // 1 // ढाल // पुढवीदगरे तेऊ वाऊ वणसई / पणयावर रे बादरसुहमदसेंथई / प्रत्येकजरे वणस्सईग्यारेंथया / वावीसरे पछत्तग अपऊत्तया // नबालो // पजात्त अपजात्तग वखाण्या विगलतिय नह नालए / जलथलखचरन्नुयंग