________________ (357) लोकस्वरूपविचारो आतमारे ए देशी // श्रुतअभ्यास करो मुनिवरसदारे, अतिचार सहुटाल॥ हीणअधिकअदर मतउच्चरोरे / शब्द अर्थ संजाल // श्रु० // 1 // सूक्ष्मअर्थ अगोचरदृष्टीधीरे / रूपी रूप विहीण / जेह अतीतअनागत वर्त्ततारे। जाणे ज्ञानीलीन // श्रु० // 2 // नित्य अनित्य एक अनेकता रे / सद सद नावस्वरूप // उएलाव एकाव्यपरिणम्यारे // एकसमयमांअनूप // 3 // उत्सर्गे अपवाद पदेकरीरे / जाणे बहु श्रुतचाल / वचनविरोध निवारे युक्तिथीरे / थापे दूषण टाल // श्रु॥४॥ व्यार्थिक पर्यार्थिकधरेरे / नय गम जंगअनेक / नय सामान्य विशेषे बहुग्रहेरे / लोकालोकविवेक // श्रु० // 5 // नंदीसूत्रे उपगारीकह्योरे / वली असुच्चागम / अव्य श्रुतने वांद्योगणधरेरे / लगव अंगे नाम // श्रु० // 6 // श्रुत अन्यासे जिनपदपामियेरे / उठे अंगे साख / श्रुतनाणी केवलनाणीसमोरे / पन्नवणिके नाख // श्रुतम् // 7 // श्रुतधारी आराधकसर्वनोरे / जाणे अर्थस्वन्नाव / निजातम परमातमसमग्रहेरे / ध्यावे ते नयदाव // श्रु० // // संयमदरशनते ज्ञानेवधेरे। ध्याने शिवसाधंत / नवस्वरूप चउगतिनो ते लखेरे / तेणे संसार तजंत // श्रु०॥ ए॥ इंजियसुखचंचखजाणी तजेरे / नव नव अर्थतरंग / जिम जिमपामे तिम मनउबसेरे / वसे न चित्तअनंग // श्रु० // 10 // काल असंख्याताना जवलखे रे / उपदेशक पणतेह / परनवसायीबालंबनखरो रे // चरण विना शिवगेह // श्रु॥११॥ पंचमकाले