________________ (37) श्रादरो। वचन निर्दोषप्रकाशरे / गुप्तिउत्सर्गनो समिति ते / मार्गअपवादसुविलासरे // सा० // 1 // ए आंकणी // नावनाबीजी महाव्रततणी / जिनजणी सत्यता मूलरे // नावहिंसकतावधे / सर्वसंवर अनुकूलरे // सा // 2 // मौनधारी मुनि नविहुवे / वचनजेआश्रव गेहरे // आचरणाननें ध्याननो / साधकलपदिशे तेहरे // सा // 3 // उदितपर्याप्ति जे वचननी / तेकरिश्रुतअनुसाररे / बोधप्राग्नावसज्जायथी। वलिकरेजगतउपकाररे // सा // 4 // साधु निजवीर्यथी परतणो / नविकरे ग्रहणनें त्यागरे / तेलणी वचनगुप्तिरहे / एहउत्सर्ग मुनि मार्गरे // सा०॥ 5 // योगजे आश्रवपदहतो। ते कखो निर्जरारूपरे ॥लोहथीकंचन मुनिकरे, साधता साध्यचिद्रूप रे // सा // 6 // आत्महितपरहितकारणे / श्रादरे पांच सशायरे // तेजणी अशनवसनादिका। आश्रयसर्वश्रववायरे॥ सा० // 7 // जिनगुणस्तवननिजतत्त्वने / जोश्वा करे अविरोधरे // देशना नव्यप्रतिबोधवा / वायणाकरण निजबोधरे // सा // 7 // नय गम नंग निदेपथी। स्वहित स्याहादयुतवा. णिरे // शोलदशचार गुणशुमलि / कहे अनुयोग सुपहाण रे // सा // ए॥ सूत्रने अर्थ अनुयोगए / बीयनियुक्तिसंजुत्तरे॥ तीयलाष्ये नयें लावियो / मुनिवदे वचन एम तंतरे // सा // // 10 // ज्ञानसमुषसमताजस्या / संबरी दयानंमाररे // तत्त्वआनंदस्वादता, वंदियें चरण गुणधाररे // सा // मोहजदयें अमोहीजेहवा / शुफ निजसाध्य खयलीनरे // देवचंदेतह