________________ ( 341) पगारजी // सु // 21 // ते गुरु तरे अवरांनेतारे / सायरमांजिम जिहाजजी। काष्ट प्रसंगें लोहतरेजिम / तेम सुगुरु संगते नव्य जी // सु // 22 // सुगुरुप्रकाशक लोचनसरिखा। झानतणादातारजी / सुगुरुदीपक घटअंतरकेरा / दूरकरे अंधकारजी // सु० // 23 // सुगुरु अमृतसरिखाशीला / दीये अमरगतिवासजी / सुगुरुतणीसेवा नित्यकरतां / चूटे करमनापासजी // सु॥२४॥ सुगुरुपचीशी श्रवण सुणीने / कर. जो सुगुरु प्रसंगजी / कहे जिनहरख सुगुरु सुपसायें / ज्ञानहरख उरंगजी // सु० // 25 // इति श्रीसुगुरु पच्चशी समाप्ता॥ ॥अथ खार्थउपर सज्झाय // ॥स्वारथकीसवहैरेसगाई। कुणमाताकुणवेनरुलाई स्वा॥१॥ स्वारथलोजननुक्तसगाई / स्वारथविणकोइ पाणीनपाई स्वा० // 2 // स्वारथमावापसेउवमाई / स्वारथविननहुदेत सहाई स्वा० // 3 // स्वारथनारीदासीकहाई। स्वारथविनलाग्लेिधाई स्वा // 4 // स्वारथचेलागुरुगुरुलाई / स्वारथविननितहोतसमाई स्वा० // 5 // समयसुंदरकहे सुणोलोकलुगाई। स्वारथ है लाइ परमसगाई स्वा० // 6 // इति // // पद्मावती राणीनी सज्झाय लिख्यते // हिवरांणीपद्मावती / जीवरासखमावे / जाणपणोजग दोहिलो / इणवेलाआवे तेमुफ मिवामिठक्कम // 1 // अरिहंतनीसाख / जेमेंजीवविराधिया / चोरासीलाख // तेमु० // 5 // सातलाख पृथवीतणा / सातेअप्पकाय। सातलाख तेऊकायना, सातेवलिवाय // तेमु० // 3 // दसप्रत्येकवनस्पती / चवदेला