________________ (340) काया जे नविदं / बुझे पांचप्रमादजी / पंचप्रमादसंसारवधारे। जाणे तेनिःस्वादजी // सु० // 10 // सरलस्वन्नाव लावमनरूको / नकरे वाद विवादजी / चारकषाय कर्मनाकारण / वरजेमदजनमादजी // सु० // 11 // पापस्थानअढारे वरजे / न करे तास प्रसंगजी / विकथामुखथी चार निवारे / समिति गुपति शुं रंगजी // सु० // 12 // अंग उपांग सिद्धांत वखाणे। ये सूधो उपदेशजी / सूधेमारगे चालेचलावे / पंचाचारविशेषजी // सु० // 13 // दशविधयतिधर्म जिन नाख्यो। तेहना धारणहारजी। धरमथकी जे किमही न चूके / जो होये कोमिप्रकारजी // सु॥ 15 // जीवतणी हिंसा जे न करे / नवदे मिरषावादजी / तृणमात्रअणदीधुं नलीये / सेवे नहीं अब्रह्मजी // सु० // 15 // नवविध परिग्रहमूल नराखे / निशिनोजनपरिहारजी / क्रोधमान मायाने ममता, न करे लोनलगारजी // सु० // 16 // ज्योतिष आगमनिमित्त न जाखें / नकरावे आरंनजी / औषध न करे नामीनजूवे / सदारहे निरारंनजी // सु० // 17 // माकिणी शाकिणी चूत न काढे / न करे हलवोहाथजी / मंत्र यंत्रने राखमीकरी ते / नवी आपे परमार्थजी // सु०॥ 17 // विचरे गाम नगर पुर सघले / न रहे एकण गमजी / चोमासाऊपरचौमासुं / नकरे एकणग्रामजी // सु॥ 15 // चाकर फरमासेंनविराखे / नकरावे कोश्काजजी / न्हावण धोवण वेसवनावण / न करेशरीरनीसाजजी // सु० // 20 // व्याजवटानुं नाम नजाणे / नकरे वजणव्यापार जी। धर्महाटमांमीनेबेग / वणिजचे परन.