________________ (315) लोक / साधूनें पूरे हो किमडे ताहरो / आचारगोचरलोग // 2 // वैरा० // मुनिवरपत्नणे हो मारगसाधुनो / कठिन आचारविचार / हुयोनहुस्ये हो धरमकोई इणसमो / मुगति तणोदातार // 3 // वैराण // षव्रतपालेहो कायराखतो / नहीं नाहणसिंणगार / पखंगनिषेध्याहो गृहीलाजन तज्या, अकटपथानअढार // 4 // वैरा० // तेललूणगुलथीहो संनि. धिजेकरे / तेगृही नहींणगार, नित्यतपन्नाख्योहो एकवार नोजने / बरजे विसनविकार // 5 // वैरा // वस्त्र पात्रराखे हो संयमराखवा / नधरेममताप्रेम / विषण करतां हो करे बंधचीकणो / अकल्पकटपेकेम // 6 // वैरा // जीवदयापाले हो / पगपगदिनसमे / वरजे रातविहार / एककायहणतां हो त्रसथावरहणे / लहेतुर्गति अवतार // 7 // वैरा // तपजप करणीहों पुःखहरण करे / निरमम निरहंकार / संवेगीसोजागी हो चंदसमनिरमलो / पुहचे मुगतिमकार // // वैरा॥ गोअतिमीगेहो लागे बाचतां / नलोधरमारथकाम / नामें सुखपामेंहो जैतसी आतमा, जलसेमनपरिणाम // वैरा // 5 // इतिषष्ठाध्ययन सफाय संपूर्णम् // // अथ सप्तमाध्ययनसझाय लिख्यते // ॥साधुबूकोरे / नाषासुमतिविचार / नाषाचिंहुँनेदे करी // सा० // सच्च असच्चा मीसा, असच्चमोसाचोथीकही // 1 // सा // बोले निरवद्यवाणी, सच्च असञ्चामोसाबलि // सा // नापोलाष न वेय / बीजीने त्रीजीवलि // // सा० // निहचे कठिनकगेर, संकितसावद्यसंलवे //