________________ (386) दही // नगरप्रधांन मरेजोकोइ, पाठपुहरअसिज्काईहोय ॥ए। वसतीकी सातांघरमांहि, नरविह+अहोरतियसिकाई // पुरुष पड्योहोयमृतकअनाथ, तां असिकायकही सोहाथ॥१०॥ पुत्रतणे प्रसवै दिनसात, बेटीआउदिवस विदात ॥सोकर मांहि कहीअसिकाई, नारीस्तु दिनतीनकहा // 11 // इमोफूटै प्रसवैगा, जांजररुधिरपमै तिनगइ // असिज्काइ साठकरमांहि, त्रिएहपोहर के ऊपरनांही // 12 // आसाढेचौमासैदिने, पमिकमणागयांधीगिणे // बारपोहर असिकाईकही, कातीचौमासैश्णपरिसही // 13 ॥ण परसिकाईबहू, गीतारथगुरुजाणैसहू // सांत्नलिए में कहीसंखेवि, हरखैपयप्रजूकीजैहेवि // 15 // अंतवर्ग अंतरजे, च्यारमात्रदीजेतेह // सत्तमवर्गवीअअदरै, तबकविनांमकहियोणपरै // 15 // इति असिकाइ सिकाय संपूर्णम् // // अथ बावीसअभक्षसज्झाय लिख्यते // जिनशासनरे सूधीसरदहिणाधरो, श्रीगुरुमुखरे नवतत्व ए निरताकरो // मिथ्यामतरे कुमतिकदाग्रहपरिहरौ, सहि पालोरे तेनर समकितमनखरो॥ 1 // तूटक // मनखरौ समकितशुधपालौ, टालोदोष दयापरो // धुरिपंचअणुव्रत तीनगुणव्रत, च्यारसिदाव्रतधरौ // इमदेशविरती क्रियानिरती, सुणो नवि. यणमनरली // दाखविएगुणपरह केरा, दोषममकाढौवली // 2 // ममकाढोरे लोनीनर कूमौकरौ, जांणीसावघरे अन्नदबावीसेपरिहरौ // व पीपलरेपिलखणनेंकतुंबरो, ऊंवरफलरे रखेतुमें, नदण करो // 3 // उबालो // रखेतुमेंनवणकरौ मांखण,