________________ (176) // अथ काउसग्गना 19 दोसनीसझाय // सकलदेवसमरीअरिहंत, प्रणमीसदगुरुगुणेमहंत / उग. पीसदोषकाउसग्गतणा / बोलुं श्रुतअनुसारेसुण्या // 1 // घोटकदोष कह्यो वलिएह / वांकोपगराखे वलि जेह / लत्तादोष बीजो हवेसुणो / मीलहलावेजेअतिघणो // 2 // उठींगणलेई जेरहे / अंजदोष ते तीजोकहै / मालदोषचोथोकह्योएह / मस्तकअटकावी रहेजेह // 3 // पगअंगूगमेलीरहे। उघिदोष ते पंचमकहे / बेऊंपगलाकरेजेह / नजलदोष बोकह्योएह // 4 // गुह्यगमि राखे निजहाथ / शबरीदोष कह्यो जगनाथ / मुखचलनाकरे अतिघण। / खलितदोष अहमतेसुणी // 5 // घूघटताणी ने जेरहे / बहुदोष ते नवमोलहे, समयमा पहिरे पहिरणूं / दशमेदोष लंबोत्तरजणूं // 6 // हृदयस्थल आगदितरहे। ते अणदोष ग्यारमो लहे / वस्त्रांसु ढाक्यो सवि देह / संयतिदोष बारसमोएह // 7 // जांमणचालो करे अतिघणुं / नमुहदोस तेरसमोनणुं / अंगुलीहलावे संख्याकाज / चवदमोदोष कह्यो जिनराज // 7 // नेत्रतणा चाला जेकरे / वायसदोष पनरमोधरे / पहिया वस्त्र संकोमीरहे / कपित्थदोष सोलसमोसहे // ए॥ मस्तकधूणावे अतिघणुं / ते सिरकंपसतरमोजणुं / महिरानीपरि जे वझवझे। वारुणी दोषअगरमोचमे // 10 // मूकदोषकह्यो जगणीसमो। तेहकरी काउसग्गमतगमो। त्रिदोष ए माहिलाटले / सोलदोषसाधवीने मिले // 11 // लंबुत्तरथणसंयती / दोषएह बोड्याजगपती / बहूदोष चौथो जबमिले / च्यारदोषश्रावि