________________ (275) शाल // 12 // अलसी कोजव कांगनें ज्वार / सातेवरसें अचित्तविचार / शीततापवर्षादिकजोय / सचित्तजोनि अचिततेहोय // 13 // हरमे पीपर मिरच विदाम / खारक प्राख एला अलिराम / जोयणशत जलवटमांवहे / साधिजोयणथसमांहें रहे // 15 // सचित्तवस्तुप्रवहणनीजेह / थाई अचित्त प्रवचनकहैएह / धूमअगनि परीयापणेकरी / अचित्त योनितस थायेखरी // 15 // बारपहूररहे जगलीराब / सोलपहुर राईतां अजाब / कमाह विगयपरि सेक्योधांन / पहिरचौवीस गोमूत्रनुमान // 16 // अतिखारु घृत कालातिल / पलटाई वर्णादिकरील / काचो दूध रहे बहुवार / एह अनदकहैमुनिसार // 17 // ढुंढणीयादिक विदलनीदाल / सेक्या धांनपरें तसकाल / च्यारपदुर सीरोलापसी / विदल परतेप्रवचनवसी // 17 // प्रथमदिवसप्रारंजी गिण्यो। कालप्रमाणसविकेहनो. लण्यो, चलितरस जेहनो जिहांथाय / तिहां ते वस्तुअनदकहिवाय // 15 // धवलो सेंधव कह्यो अचित्त / श्राविधे अख्यरांप्रतीत / ए कालादिकचहरांजेथाय / तेहअचित्त थापना न थाय // 20 // गीतारथनेंवयणेंजोय / श्राचीरणअनाचारणहोय, आई धांनअंकुरनीकले / तबतेवस्तु अन्न मां जिले // 21 // गेरू मणसिल लवणहरियाल / श्रावेजलवट माहिरसाल / तेह अचित्त होइ प्रवचनसाखि / पिण लेवानी नहींतसुजाखि // 22 // इमबोट्यो जबलेशविचार / विस्तारप्रवचनसारोबार / धीरविमलपंमितसुपसाय, कवि नयविमलकहेसजाय॥२३॥ इतिसचित्तचित्तवस्तु स्वरूपसकाय॥