________________ (17) पारीसा-जवनमेंऊपनो, न केवलज्ञानउदार, प० न ॥४ए॥ लव्यकमलप्रतिबोधिने, न पाम्योशिवसुखसार, प० ज० // 50 // पर्वपजूसणवर्णव्यो, ज. जिनकृपाचंसूरीश, प० ज० // 51 // ॥ढाल छट्ठी॥ // कलश धनाश्री देशी॥ गायोगायोरेनविपर्वपजूसणगायो, तीर्थोमांशत्रुजयमहिमा, नवकारमंत्र सवायो, दानमांप्राणिदयादिलधारो, पर्वमाहिकहवायोरेन प॥५॥ लौकिक लोकोत्तर बहु नेदे, पर्वघणाचित्तलायो, सहुमांचिन्तामणिसमजाणो, एहमांमनहरायोरे ना प० // 53 // शुक्ल प्रोगणीसेनहोत्तरवरसे, श्रावणसुदि मन. जायो, पारसनाथ निर्वाण दिवसे, पर्वमहातमगायोरे जा प० // 55 // खरतरगढ जिनआणाधारक, जिनकृपाचनप्रसू. रिरायो, सुरतबन्दररहिचोमासो, एअधिकारबनायोरे ल. प० // 55 // अगहि स्तवनम् सं० श्रीमहावीर स्वामीना कल्याणकनुं स्तवन // सिधारथकुलदिनमणि, त्रिशलामातसुजात / महावीरगुण वर्णवं, त्रिजुवनमें विख्यात // 1 // कट्याणक वर्णनकरं, शास्वतणेअनुसार सावधानथई सांजलो, श्रोताजनसुखकार // 2 // श्णश्रवसर्पिणीकालमां, तीर्थकरचोवीस, जव्यकमलप्रतिबोधता, विचर्याजगना ईश // 3 //