________________ य॥३॥ मपिपुलाय, नविजयणखेत // 2 // (173) फागुणशुदिाउमफरसेरे, जिनकृपाचंजसूरिमनहरसे, नवि०१२ इति स्तवनसंपूरणम् // // 9 ढालका // // अथ श्रीसम्मेतशिखरजीको रास लिख्यते // वांदीवीसजिनेसरू, रचस्युं रास विशाल, तीरथशिखरसमेतनी, महिमावझीविशाल // 1 // मोटोतीरथ महियले प्रगट्यो शिखरसमेत, कोमाकोमीमुनिवरु, सिद्धिगयेणखेत // 2 // तीरथसिखरसमेतए, फरस्यां पापपुलाय, नविजन नेटो नावसुं, ज्युसुखसंपदथाय // 3 // महिमासिखरसमेतनी, कहिनसकेकविकोय, गुणअनंतनगवंतना, तिमएतीरथहोय // 4 // // ढाल 1 // चौपईंनी // गिरवरशिखरसमोनहींकोय, एहनी महिमा सबजगहोय, वीस जिनेसरमुगतेगया, मुनिजनध्यानधरीनेरह्या // 1 // प्रथमअयोध्यानगरीनली, तिहांजितशत्रुनरेसरबली, विजयाराणीने सुतजाण, अजितकुमरसढुगुणनीखाण // // जसुइंसादिक सेवाकरे, इंशाणीअतिनन्नवधरे, तीर्थकरनीपदवीलही, अंतरअरिजिणसाध्यासही // 3 // अनुक्रमश्मनोगवतांनोग, पुण्यप्रसाद मिट्योसदुजोग, अवसर, संवरीदान, संजमलीनो आपसुंजान, // 4 // कर्मखपावीपाम्योज्ञान, केवलदर्शनलह्योप्रधान, विचरेपुहवीमंझलमांहि, जव्यजीवप्रतिबोधनतांहि // 5 // सिंहसेनादिक गणधरजया, पंचाणवेसंख्या सहुथया, एकलाख मुनिवरपरिवस्या, श्रावक श्रावकणी बहुकस्या, // 6 // तीनलाख वलितीसहजार, साधवीयांजाणो सुविचार, श्रावक