________________ (177) देवोदानसुपात्रने / साहमी वलसार॥नगतिकरोसाहमीतणी। रात्रिजागोजदार // ज्ञा० // ३ए // वरदत्तनेगुणमंजरी / ज्ञान बाराधिने सुख // पामी अविचलपदवह्या / मेटीने नवमुःख ॥ज्ञा०॥४०॥ कलश // संवत् जगणीसै पिचत्तर पोषवदि एकमजलै / सुरतबंदरनविकसुखकरसीतलजिनसुपसाजलै / श्रीवीरजिनवर पंचमितपविधिप्रकाश्यो शुलमणे / सुविहित परंपरगबखरतरजिनकृपाचंजसूरिजणे // 1 // इतिपांचम वृषस्तवनम् // // अथ दीवालीको स्तवन लिख्यते // उहा // वर्षमानजिनचंदकुं / नमनकरीकरजोम / कट्याणकविधिवर्णवू / मानमांत्राणिकोम // 1 // वीरजिणंद दिणंदसम समवसस्यागुणखाण // जव्यकमलप्रतिबोधता, त्रिनुव. नजनमहिराण // 2 // // ढाल 1 // प्रथम जिनेसर प्रणमीयै // ए देशी // वर्षमानजिनराजजी / गुणगणनगमअपार // चौवीशम जिनचंद / जगतसुहंकरु / सर्वजीवसुखकार // व० // 3 // समकितपामीनप्रनु / नवसत्तावीसकीधा / वीसथानक तपसेवी जिननामबांधियो / स्वर्गतणा सुखसीधा ॥व० // 4 // अषाढशुदिषष्ठिदिने / चविया स्वर्गथीसार / देवानंदाने उदरे उपन्या जगधण।। सहुजगमे हितकार // व० // 5 // चउदे. सुपनानिशिलह्या / उपनो हरखअपार / दिवसवैयांसीरह्या माहणअवतारमा / कर्मतणे अनुसार ॥व०॥६॥ श्रादेशथी श्राश्विन वदित्रयोदशीदीश / हरणेगमेसीसंक्रमणकस्या बु० स्त० 12