________________ (174) नाजी / श्राणिजक्तिअपार, पांचज्ञानप्रगटायवाजी // पंचमीसेवोडदाररे, प्राणि जिनवाणिमनश्राण अनुपमसुखनीखाणरे ॥प्रा० // जिन // 1 // नाणबमो संसारमाजी, ज्ञानश्रीमुगतिथाय, ज्ञानदीपकसमजाणियेजी, सर्वलोक प्रगटायरे // प्राण // जिनः // 2 // दिव्यज्ञान लोचनकडोजी,लोकालोकदेखाय, ज्ञानविनापशुसारिखोजी, जाणेनही नर कांयरे ॥प्राजिण // 3 // ज्ञानश्राराधकसर्वधीजी // किरियादेशविचार, नगवतिसूत्रमांनाखियोजी, आपमें शतकमकाररे // प्रा०॥ जि० // 4 // अज्ञानीकोमवरसमांजी, तपकरि निर्जराजेह, ज्ञानिस्वासोस्वासमांजी, कर्मदयकरतेहरे // प्रा० // जि // 5 // ज्ञानतणो अधिकारजी नंदिसूत्रमकार, क्रियासहितज्ञानसुंदरंजी, मोक्षतणोदाताररे ॥प्रा० // जि० // 6 // जिमसोनो सुगंधीजी रत्न मुंदरीयेजाण, संखसोहे दूधेनखोजी, तिमकिरियायुत नाणरे // प्राण // जि॥७॥ महानिसीथमाहैकडोजी, पंचमी विधिविस्तार, वीरजिनंदैदाखियोजी, सूत्रेश्रीगणधाररे // प्रा० // जि // // ( ढाल ब्रीज़ी) सखि आजअनोपम ए सुखकारी, सखिनाणसुहंकारगुणकारी // ए॥ पंचमीतपविधियुत जवि करकै, नाणनेसेवोश्कतारी // स ॥ना॥१०॥ मगसर माह फागुण वैसाखे, जेठ आषाढने दिलधारी // स० ॥ना // 11 // एषट्मासे विधियुतलीजै, शुजदिनगुरुमुख पोलीभूजीसुविचारी // स० // ना० // 13 // गीतारथगुरुचर