________________ औरजी सुणो इस ग्रन्थके अत्यन्त मनोहर होनेपरली प्रमाद और विस्मृतिकरके जो प्रथमावृत्तिमें क्रम उलंघन हूवा था, वह नी इसन्तिीयावृत्तिमें सुधारा गयाहै, औरली इसमे विशेष संग्रहकरके इस ग्रन्थको पहिली श्रावृत्ति विशेष रोचक बनाया गयाहै, और इस ग्रन्थके घुफादिकदेखनेका परिश्रम शास्त्रविशारदजैनाचार्यश्रीमजिनकृपाचन्प्रसूरीश्वरजीमहाराज साहबने उगयाहै, सो उनोंका आजारी हैं, तथा इस बृहत्स्तवनावलीकी प्रथमावृत्तिको श्रीसंघने जेसा अपने पढनेकु ग्रहणकर दूसरी श्रावृत्ति उपानेका हमारा उत्साह बढाया सो हम श्रीसंघके नी आनारीहैं और आशा रखते हैं कि जिस तोरसें प्रथमावृत्तिको अपनाया उसीतरह इस दितीयावृत्तिकोनी अपनाकर तृतीया वृत्ति उपानेका उत्साह बढावेगें और अपणे आत्माका कल्याण करेंगे और इस ग्रन्थकी पहिली आवृत्ति केवल 500 पीश्री सो शीघ्र खलास होणेसें और कश्श्रावकोंकी जादा मांगणी होणेसें द्वितीयावृत्ति 2 हजार नकल उपाणी पमीहै, औरनी इस ग्रन्थमें दृष्टिदोषसें विस्मृतिदोषसें मतिमोहसे गपा आदिकके दोषसें अदर पद कानो मात्रा वगेरा ओग अधिका हूवा होय सो दीर्घ दीयोकुं शुद्ध करणा नचितहै, यह सऊनोंसें नम्र प्रार्थना युग प्रवरागमश्रीमजिनकृपाचन्प्रसूरीश्वरजीके शिष्य रत्न विधविरोमणि ज्येष्ठान्तेवासी श्रीमान् आणंदमुनिजीकें लघुगुरु नाता ज. / जय सागरगणिकीहै सो श्रीमान् सजान पाठकवर्ग अवश्य सार्थक करेंगे, इति अनिलषामहे // चिरं नन्दन्तु पाउकाः॥ चिरं नन्दन्तु गजेश्वराः॥चिरं नन्दन्तु कौटिकगजेश्वराः॥चिरंन