________________ (145) अष्टमंगल वृधथाल // न० // वात्सहयचौविद संघनी, यथाशक्तिसुविलास // ज क // 12 // श्रोधन तपकरे, कर्म प्रकृतिनोसार // ज० // सुरनरसुखअनुक्रमलही, शिवरमणीजरतार // ज० क० // 13 // कटश // जिनचंदसूरिमुर्णिदखरतरगण खशशिसमयुगवरा, तासुवचने स्तवनकीधो नयर श्रीवालूचरा। चंञानुयोगनिध्येकवरषे विशदफालगुनबादशी जवळायतत्वप्रधानगणिने अमृतगतिचित नितवशी // 14 // इति श्री कम्मपयमी स्तवनं संपूर्णम् // अथ श्रीशांतिनाथजीनो वृद्धस्तवन लिख्यते // श्रीसारदमातनमुं सिरनामी, हुँ गाउं त्रिनुवनकेस्वामी / संतहिसंतजपे सबकोई।जांघरशांति सदासुखहोई॥१॥सांतिजपीने कीजे कामा।सोईकामदुवै अनिरामा / सांतिजपी परदेशसिधावे / तेकुशले कमलालेावे ॥२॥गर्नथकीप्रन्नु मारि. निवारी / शांतिहि नाम दियोमहतारी / जे नर शांतितणा. गुणगावे / ऋषिअर्चिति ते नर पावे // 3 // जानरकुं प्रनु शांतिसहाई / तानरकुं कुछारतिनांहि / जो कबुवंने सोही, पूरे / दारित्रदोष मिथ्यामतचूरे॥४॥ अलख निरंजन ज्योतिप्रकासी / घटघटके नीतरप्रनुवासी / स्वामिसरूपकह्यो नवि. जावे / कहितां मोमनअचरिजावे // 5 // मार दिया सबही. हथियारा / जीतामोहतणादलसारा।नारितजीसिवसुं रंगराचौ। राजतज्योपिण साहिबसाचो // 6 // महाबलवंतकहीजे देवा, कुंजरकुंथु न एकहणेवा।ऋधिसहू प्रनुपासवहिजे, निक्षाहारी नामकहीजे // 7 // निंदक पूजक हे समजायक, पिणसेवगकुं बृ० स्त० 10