________________ (151) वेताल न पुहवश् / आधिव्याधि ग्रहतणी पामते किमहिनहोवे / कुजलोदर रोगसबे नासेएणही मंत // मयणासुंदरितणीपरे नवपयकाणकरंत // 11 // एकजीह इणमंत्रतणा गुणकितावखाणुं / नाणहीण उनमत्थएहगुण पार नजाणू // जिमसतुंजयतित्थराज महिमाउदयवंतो // सयलमंत्रधुरि एह मंत्रराजाजयवंतो / तित्थंकरगणहरनणिय चवदहपूरबसार / इणगुणअंत नकोलहे गुणगिरनवकार // 12 // अमसंपय नवपय सहित इगस बहुअक्खर / गुरुअक्खरसत्तेव इह जाणो परमाक्खर, गुरुजिणवबहसूरिजणे सिवसुरकहकारण, नस्य तिरियगइ रोगसोग बहुउरकनिवारण / जलथलमहियल वनगहण स्मरणहुवे इकचित्त, पंचपरमेष्ठिमंत्रतणीसेवा देन्योनित्त // 13 // इतिपंचपरमेष्ठीमहिमास्तवनं संपूर्णम् ॥अथ सत्तरसोजिनको स्तवन // ॥हा // स्वस्तिश्रीदायकसदा त्रैसलेयजिनचंद // तत्पद नामीकंधरा, कारण सिवसुखकंद // 1 // वायंका सारदा तणो, उरधरिसमरणशक्ति / सप्तत्युत्तरसतजिनतणी, रचस्युंनुतिसुचिनक्ति // 2 // जेवीपसमस्तनै, मध्यमेरू कनकाल / पूर्वापरलवितेहने, विजयनामकोलान // 3 // मूल विजयवसुप्रतिदिशा, कथनामेंयुगतीस / शीतोदा तरणीतणो, कारणविश्वावीस // 4 // अंकधातकीदूसरो, दीपमनोहरतेह / कंचनगिरियुग तिहां, मनधारो धर नेह // 5 // त्रयतमपुष्करजांणिये, दीपसकलगुणखांण / अर्धनागजसुउत्तमें, गिरियुग जलदसमांन // 6 // नोजवि संख्याविजयनी, प्रतिमेरौबत्तीस /