________________ (133) महीसें राच्यो / ज्युं चात्रकचित्तघनमें // तूं // 2 // जोगी सरतेरी गतिजांणे / अलख निरंजनजिनमें। कनककीरतिसुखसागर तूंही / साहिबतीननुवनमें / तूं मेरे मनमे तूं मेरे दिखमे // 3 // इति श्रीपार्श्वनाथजीरो स्तवन संपूर्णम् // // अथ श्रीचिंतामणी पार्श्वनाथजीका लघुस्तवनं लिख्यते // // जिनजी महिरकरीने राज / दरसणवहिलोदीजे / दीजे दीजे जी माहाराज / कारजसगलासीके / ए आंकणी / मुफ मननमरतणीपरमोह्यो / बगेमायोनविछूटे / प्रेमरागबंधाणो पूरण, तेतो कदियनखूटे // जि // 1 // अलगथकां पिण हूं प्रनुतुमने / नहिय विसारं दिलसुं / रातदिवस एहवी मनवरते। जाणुं जमिळुतुमसुं॥ जिः // 2 // पूरबपुन्यथकी मेंपायो / ए अवसराजूणो / मिलियोतूं प्रनुपासचिंतामण / साहिबसहजसलूणो // जि // 3 // थारेतो सेवक बहुला / मो सरिखा लखग्याने / माहरेतो इण जगमे जोतां / थारे नहीं कोश्टाणे // जि० // // आसहीये इक ताहरी राखुं / बीजोमुखनही नाखू // अमृतजेमलही तुफ गुणरस, खारोजल किमचाखू // जि० // 5 // मोहन ए मुजानी महिमा / कहतां पारनावे // सायरलहरमालानेंगिणतां, कहोकुणमतिउपजावे // जि॥६॥ जगतपणे किंचित गुणनाखू, हूं मारी मतिसारू॥ निरुपमअनुपमप तुझगुण लायक, त्रिजुवनजीवनसारू // जिप // // वरसअढारवली इकताले, मिगसरपखउजवाले ॥इग्यारसदिन अधिक सनेहे, यात्रकरीविशाले // जि // 7 // जेसलगिरिश्रीसंघ जुगतसुं, मेलो तिहां मंमायो / लाजउदय