________________ (116) चन गिरी वखारापरबत, गजदंतागिरिराय ! नसालबन मारग विचमे / लागेकेमनपाय // 16 // मारी क्यांमुज देश ने जरतखेतर / क्यां पुखलावतीजिनराज / ओमेलोकिम होसीसाहिब / तारणतरणजिहाज // 17 // मारी० // निसदिनमारे तुही श्रालंबन / वसीयोहृदयमकार / नवमुख नंजन तुंहीनिरंजण / करुणाकलानंमार // 10 // मारी० // मनवंचित सुखसंपतिदाता, प्रनु शाहेवगे खास / मुजने सेवक साचो जाणी, पुरोमननीयास मावी ॥१ए। खरतर हरखगुरुसुपसाये। रूपचंद गुणगाय। अगरचंदको श्रीजिनबरजी। तारो दीन दयालाय॥२०॥ मारी० // संवत् अढारसे इकवीसे / पोसवदी सुन मास / बीज ना बुधवार अनोपम, जिनपदवंदननास // 1 // मारी बीन० // इति श्रीसीमंधरस्वामीवृधस्तवनं संपूर्णम् // अथ श्रीनवपदजीकी लावणी लिख्यते // जगतमें नवपदजयकारी / पूजतां रोगटलेजारी। प्रथमपदतीरथपतिराजे / दोषअष्टादशकूत्याजे / आउप्रातिहारजगजे / जगतप्रनु गुणबारेसाजै ॥दोहा // साखी // अष्टकरमदलजीतके / सकलसियते थाय / सिपअनंता नजो बीजेपद, एकसमयशिवजाय / प्रगटनयो निजस्वरूपनारी // जग // 1 // सूरिपदमें गौतमकेशी / उपमा चंजसूरजजेशी // उधास्यो राजापरदेशी। एकनवमांहे शिवलेशी ॥दोहा॥ साखी // चोथेपदपाठकनमूं / श्रुतधारीउवकाय सर्वसाहुपंचमपदे / धनधन्नोमुनिराय / वखाण्योवीरजिणंदनारी // जग॥२॥ व्यषट्की श्रद्धाभावे / समसंवेगादिकपावे / विनायहग्याननही