________________ (104) गणीसे सित्तरेहो राज यां० पोसदशमीसुविदीत, आनंद सुखपामीयाहो राज आं थां० 1 // नवनवचाडं चाकरीहो राज श्रां प्रनुचरणांरीनित्त, कृपाचंवीनवेहो राज कृ थां० श्रीसिघाचल शिखरे शपत्ननले नेटियाहो राज // 15 // इति सिघाचलस्तवनं संपूर्ण // ॥अथ वीशस्थानकतप वृद्धस्तवनं लिख्यते // ॥श्री सिद्धाचलभेटीये ए देशी // ॥वीशथांनकतपसेवीए / धरकरि सुनपरिणांम लालरे। तीजेनवसेव्योथको / बांधेतीर्थकरनाम लालरे // वी० // 1 // तपरचनाअधकीकही / ज्ञाताअंगमकार लालरे / सुणजो नवि तुमे नावसुं / चितसेंकरिएनच्चार लाखरे // 2 // सुविहितगुरुपासेग्रहे / वीशांनकतप एह लालरे / निरदूषण सुन्नमहुरते। जचरीजे ससनेह लालरे // वी // 3 // अरिहंत 1 सिम 2 प्रवचन नमुं॥ सूरि / थिवर 5 उवज्काय 6 / लालरे // साधु 7 नाण - देसण ए अरु // विनय 10 नमुं जलसाय लालरे / / वी // 4 // चारित्र 11 बंन 12 क्रियापदे 13 // तप 15 गोयम 15 जिण 16 ईस लालरे // चारित्र 17 // ज्ञानने 10 श्रुत 15 जणी नमुं तीर्थ 20 पद वीश लालरे // वी // 5 // वीशदिवशमेंएकही / पदगुणनो करमेव लालरे / अथवा दिन वीशांलगे / वीशेपद गुणमेव लालरे ॥वी // 6 // एक उलीषट्माशमें / पूरीजो नविहोय लालरे / फेरनवी करणीपमे। पिछली निष्फलजोय लालरे // 7 // वी० // अच्म उपवाससुं। अथवा देखीशक्ति लालरे / पोसहकराराधिये / देववादेनि