________________ કષાયપ્રાભૃતચૂર્ણિ અને જયધવલા ટીકામાં રસઅપવર્તનાનું સ્વરૂપ 207 प्रथम स्पर्धक अपकर्षित नहीं होता / 6. क्योंकि वहाँ पर अतिस्थापना और निक्षेप नहीं देखे जाते। द्वितीय स्पर्धक अपकर्षित नहीं होता / 7. क्योंकि वहाँ पर भी अतिस्थापना और निक्षेपका अभाव पहेलेके समान पाया जाता है / केवल प्रथम और द्वितीय स्पर्धकोंका ही यह क्रम नहीं है, किन्तु जघन्य अतिस्थापनारूप अन्य अनन्त स्पर्धकोंका भी यही क्रम है इस प्रकार इस बातके जताने के लिए आगेका सूत्र कहते हैं - इस प्रकार अनन्त स्पर्धक जो कि जघन्य अतिस्थापनारूप हैं इतने स्पर्धक अपकर्षित नहीं होते / / 8. इस प्रकार तीसरा, चौथा और पाँचवाँ आदिके क्रमसे जाकर स्थित हुए अनन्त स्पर्धक अपकर्षित नहीं किये जा सकते / शंका - वे कितने हैं ? समाधान - जितनी जघन्य अतिस्थापना है उतने हैं / इनसे उपरिम अनन्त स्पर्धकोंका भी अपकर्षण सम्भव नहीं है इस बातका कथन करनेके लिए इस सूत्रको कहते हैं - जघन्य निक्षेपप्रमाण अन्य अनन्त स्पर्धक भी अपकर्षित नहीं होते / 9. प्रारम्भसे लेकर जघन्य अतिस्थापनाप्रमाण स्पर्धकोंसे आगेका स्पर्धक अपकर्षित नहीं होता, क्योंकि उसकी अतिस्थापना सम्भव होने पर भी निक्षेपविषयक स्पर्धक नहीं देखे जाते / उससे अनन्तर उपरिम स्पर्धक भी अपकर्षित नहीं होता / इस प्रकार जघन्य निक्षेपप्रमाण अनन्त स्पर्धक अपकर्षित नहीं होते / 15