SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 200 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता स्वाध्यायादनु उवही स्थण्डिलं संदेशापयति, यदाहुः"तो वसहिं च पमज्जिय ठवणायरियं तहेव पेहित्ता / दाऊण खमासमणं पुत्तिं पेहिति उवउत्तो // 1 // अह लहुयवंदणेण सम्मं कुव्वन्ति तयणु सज्झायं / सुत्तत्थगाहिणो जे तेसिं सो चेव सज्झाओ // 2 // चत्तारि खमासमणा देइत्थं दो उ थंडिलाण पेहाए / दुन्नि य गोअरचरियापडिकमणे काउसग्गे य // 3 // " // 118 // अथ कस्मिन् काले किं किं प्रतिलिख्यते तदाह - गोसे दसगं पेहे उग्घाडापोरिसीइ पत्ताई। सव्वं तु चरिमजामे पक्खाइसु तदभिहा एव // 119 // गोसे-प्रत्यूषे उषस्येव दश मुखवस्त्रिकारजोहरणप्रभृति प्रतिलेखयेत्, तथा उद्घाटपौरुष्यां पात्रादिकं-पात्रं पात्रबन्ध इत्यादि, प्रतिलेखयेत् तुपुनश्चरमयामे- तृतीयप्रहरपौरुष्यां सर्व-सर्वमपि प्रतिलेखयेत्, पक्षादिषुपाक्षिकचातुर्मासिकसांवत्सरिकादिषु तदभिधा एव // 119 // अथ पुनः प्रतिलेखनाया विशेषमाह - अह पत्ताणुवगरणं पडिलेहिय निक्खिवंति तो उवहिं / पेर्हिति गुरुपरिन्ना गिलाणसेहाइ अप्पस्सा // 120 // अथ पात्रकाणामुपकरणं-उपस्करं प्रतिलेखयित्वा ततः उपधि निक्षिपन्ति, ततो गुरूणामुपधि प्रतिलेखयति, ततो ग्लानशैक्षादीनां ततश्चात्मन उपधि प्रतिलेखयतीति योगः // 120 // . अथ स्थविरकल्पिकानामुपधिसङ्ख्यामाह -
SR No.032794
Book TitlePadarth Prakash 22 Yatidin Charya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayhemchandrasuri
PublisherSanghvi Ambalal Ratanchand Jain Dharmik Trust
Publication Year2014
Total Pages246
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy