________________ 159 श्रीयतिदिनचर्या अवचूर्णियुता नारी पीवरगब्भा वड्डकुमारी य कट्ठभारो अ। कासायवत्थ कुंतंधरा य कज्जं न साहति // 2 // चक्कयरंमि भमाडो भुक्खऽहिमारो य पंडरंगंमि / तच्चन्नि रुहिरपडणं बोहिय दिढे धुवं मारणं // 3 // " तथा विहर्तुमुद्यतः साधुः सुलभबोधिश्च भवति, किं कुर्वन् ?विशुद्धं-निर्मलं चरणकरणं-चरणकरणसप्ततिकारूपं चारित्रमुपबृंहयन् प्ररूपयंश्च, यदाहुः"वय 5 समणधम्म 10 संजम 17 वेयावच्चं च 10 बंभगुत्तीओ 9 / नाणाइतियं 23 तव 12 कोहनिग्गहाई 4 चरण 70 मेयं // 1 // " अथ करणसप्ततिका - "पिंडविसोही 4 समिई 5 भावण 12 पडिमा य 12 इन्दियनिरोहो 5 / पडिलेहण 5 गुत्तीओ 3 अभिग्गहा चेव 4 करणं 70 तु // 1 // " अनयोविवरणमागमाद् बोद्धव्यं, तथा 'अवसन्ने'ति कोऽर्थः ?अवसीदतीति क्रियाशैथिल्यात् मोक्षमार्गे श्रान्त इव अवसन्नः, उक्तं च - "ओसन्नोऽविय दुविहो सव्वे देसे य तत्थ सव्वंमि / उठबद्धपीढफलगो ठवियगभोई य नायव्वो // 1 // आवस्सयसज्झाए पडिलेहणझाणभिक्खअभत्तट्टे / आगमणे निग्गमणे ठाणे य निसीयणतुयट्टे // 2 // आवस्सयाइयाइं न कइ अहवावि हीणमहियाइं / गुरुवयणबला य तहा भणिओ एसो उ ओसन्नो // 3 // " // 56 // अथ वाचनाश्रवणे विशेषफलं किमित्याशङ्क्याह - वक्खाणं निसुणंता अगहियधम्मावि तित्तियं कालं / हुंती आरंभविरया किं पुण गिण्हंति जे धम्मं ? // 57 //