________________ @RH +MA प्रस्तावना कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य देव श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा रचित श्री सिद्धहैम व्याकरण में से पू. पंडितवर्य श्री द्वारा संकलित श्री हैम संस्कृत प्रवेशिका प्रथमा को नाकोडा मे पंडितवर्य श्री नरेन्द्रभाई के पास अध्ययन कर, जो कुछ हमारी मति अनुसार कर सकते थे जिसमें बाल जीवों को संस्कृत पढना और आसान हो इसलिए हमने श्री पद्म-वर्धमान संस्कृत धातु शब्द रूपावली का संकलन कीया, अब सिद्धगिरिराज की छत्र-छाया में चातुर्मास के पुन्य संयोग में श्री हैम संस्कृत प्रवेशिका मध्यमा का अध्ययन (पंडितवर्य श्री के पास) करना प्रारम्भ कीया, जैसे जैसे अध्ययन चलता गया वैसे ही सरल होता गया, उसी समय पूज्य गुरूदेवों की पावन प्रेरणा को प्राप्त कर इस पुस्तक का सर्जन संकल्प कीया, जिस प्रकार जैन धर्म में श्रुत (ज्ञान) रूपी सागर मे से हमारे जैसे बाल जीवों के बोधार्थ पूर्वाचार्यों ने भी सरल भाषा में ग्रंथो का सर्जन कीया, उसी प्रकार से संस्कृत के अभ्यासुओं को धातु के रूप, सन्नन्त, प्रेरक, विगेरे की जानकारी सरलता से प्राप्त हो और वे भी संस्कृत के अध्ययन द्वारा आगमग्रंथो का अध्ययन करके स्व एवम् पर के कल्याणार्थ बने यही उद्देश्य से हमने यह पुस्तक प्रकाशित की है, यही अभिलाषा के साथ... मुनि राजपद्मसागर मुनि कल्याणपनसागर / +मनट