________________ हस्तीकुण्डी का इतिहास-७२ पत्रों के साथ अदभ्र-स्वच्छ ; धात्रीजनों के द्वारा हरे हुए हृदय वाले विलासों के साथ चित्र युक्त (अाश्चर्ययुक्त तथा चित्रयुक्त) देव मन्दिर अत्यन्त सुन्दर शोभायमान हैं / / 26 / / मधुरा घनपर्वाणो हृद्यरूपा रसाधिकाः / यवेक्ष वाटा लोकेभ्यो नालिकत्वाद् भिदेलिमाः // 27 // ____ इस नगरी में कठिन गाँठ वाले मनोहर रसपूर्ण एवं मीठे गन्ने की खूब बाड़ियाँ हैं / प्रचुरता के कारण लोगों को इन्हें तोड़ने की छूट है / / 27 / / अस्यां सूरिः सुराणां गुरुरिव गुरुभिगौ रवा) गुणोघे, भूपालानां त्रिलोकीवलयविलसितानंतरानंतकोतिः / नाम्ना श्रीशान्तिभद्रोऽभवदभिभवितु भासमाना समाना, कामं कामं समर्था जनितजनमनः संमदा यस्य मूतिः / 28 / इस नगरी में महान् गुणसमूह से राजाओं के द्वारा पूजनीय, देवताओं के गुरु बृहस्पति के समान त्रिलोक में अनन्त यश वाले शान्तिभद्र नाम के गुरु हए / जनमन को प्रफुल्लित करने वाला उनका तेजस्वी शरीर कामदेव को भी लज्जित करने वाला था / / 28 / / 1. यहाँ शालिभद्रसूरि नाम भी हो सकता है क्योंकि बलिभद्ररास में वासुदेवसूरि के गुरु शालिभद्रसूरि बताए गए हैं___ अम्ह गुरु सालिसूरि मरुदेसि रहई छई पल्लिनगरि निवेसी / -बलिभद्ररास, ६८वीं चौपाई