________________ शिलालेख-७१ सदाचारियों से पूर्ण इस नगरी में सुन्दर कामिनियों के स्तनों के समान मन्दिरों के निर्मल सोने के कलशों के अतिरिक्त और कोई वस्तु चित्त को हरण करने वाली नहीं थी / / 24 / / समदमदना लीलालापाः प [राग...ध] नाकुलाः, कुवलयदृशां संदृश्यन ते दृशस्तरलाः परम् / मलिनितमुखा यत्रोवृत्ताः परं कठिनाः कुचाः, निविडरचना नीवौ बंधाः परं कुटिलाः कचाः // 25 // इस नगरी को कामिनियों का शृङ्गार मदमाता है / कमल सदृश उनके नेत्र अत्यन्त चञ्चल हैं। ऊंचे उठे हुए काले मुख वाले स्तन बड़े कठोर हैं, उनके अधोवस्त्र की रचना दुरूह है एवं केश घुघराले हैं। (स्त्रियां किसी भी नगर की समृद्धि की परिचायक होती हैं / शृङ्गार कब होता है ? सुख के समय) // 25 / / गाढोत्तंगानि सार्द्ध शुचिकुचकलशैः कामिनीनां मनोजविस्तीर्णानि प्रकामं सह घनजघनर्देवतामन्दिराग्गि / भ्राजन्तेऽदभ्रशुभ्राण्यतिशयसुभगं नेत्रपात्रैः पवित्रैः, सत्रं चित्राणि हि धात्रीजनहतहृदविभ्रमर्गत्र तत्रम् 26 इस नगरी में यत्र-तत्र कामिनियों के पवित्र कलश तुल्य सुन्दर कुचों के साथ अत्यन्त उन्नत, [अर्थात् कामिनियों के कुच कलश तथा मन्दिर दोनों यहां उन्नत हैं] उनके (कामिनियों के घने जघनों के साथ अत्यन्त विस्तीर्ण, पवित्र नेत्र