________________ प्राइए, मन्दिर चलें बीजापुर से जो सड़क उदयपुर जा रही है उसी पर तो हस्तिकुण्डी का यह प्राचीन तीर्थ स्थित है। चौंकिए नहीं, बीजापुर से उदयपुर केवल 40 मील दूर है और पक्की सड़क बन रही है। थोड़े दिनों में यहाँ होकर उदयपुर के लिए बसें चलेंगी। देखिये, सड़क के आसपास कितने सुन्दर दृश्य दिखाई दे रहे हैं ! सामने अरावली की पर्वतमाला का सौन्दर्य देखते ही बनता है। क्या कहा ? मन्दिर केवल दो मील पर ही तो है फिर भी क्यों नहीं दिखता ? महाशयजी ! मन्दिर तो पर्वत की तलहटी में आया हुआ है एवं वृक्षों के झुरमुटों में छिपा हुआ है। देखिए, नदी में ये जो सफेद पत्थर दीख रहे हैं न, ये एक बावड़ी के खण्डहर हैं। बावड़ी नदी में दब गई है। ऐसी ही नौ बावड़ियाँ एवं पाठ पनघट यहाँ आसपास दबे पड़े हैं। इस विषय में यहाँ एक उक्ति प्रसिद्ध है "पाठ कुत्रा, नव बावड़ी, सोलह सौ परिणहार" पाठ कुओं एवं नव बावड़ियों पर लगातार सोलह सो पणिहारियाँ यहाँ पानी भरा करती थीं। बस, यही मुख्य दरवाजा है। इसके अन्दर कुल 13 / / बीघा जमीन है। बाईं तरफ यह गुरु-मन्दिर है। इसमें श्रीमद विजयवल्लभसूरीश्वरजी की गुरु-प्रतिमा की स्थापना व प्रतिष्ठा संवत् 2026 के मार्गशीर्ष मास में उनके पट्टधर