________________ हस्तिकुण्डी के प्राचार्य-२५ पुण्य प्रभावक जारणी ई विद्याबलि बलिभद्र / तसु चरित्र वखाणी ई जस गुरु जस भद्र // ___ आप विद्वान् एवं महाप्रभावक थे। यशोभद्रसूरिजी की मृत्यु के पश्चात् आपने अपनी विद्या के बल से लोगों को अपने वश में कर लिया। अपने जीवनकाल में यशोभद्रसरिजी ने अपने पाट पर चौहानवंशीय शालिभद्रसूरिजी को प्रतिष्ठित किया इससे बलिभद्रजी को बहुत बुरा लगा। आप तब वहाँ से गिरनार पर्वत की गुफा में चले गए। उस समय यहाँ राय नवघन का पुत्र खंगार राज्य करता था। वह बौद्ध था एवं उसने गिरनार को अपने कब्जे में कर लिया था। इन्हीं बलिभद्रजी के चमत्कार से प्रभावित होकर यह तीर्थ बौद्धों के प्रभाव से मुक्त हुअा था। जव आप हस्तिकुण्डी में विराजते थे, उस समय पाहड़ का राजा अल्लट था। उसकी रानी को रेवती दोष हुआ। कई उपचारों के बाद भी जब रानी स्वस्थ नहीं हुई तब बलिभद्राचार्य को बुलाया गया; पर उन्होंने हस्तिकुण्डी में बैठे-बैठे ही रानी को ठीक कर दिया। तब उन्हें आहड़ में बुलाकर भारी उत्सव किया गया। यहीं पर आहड़ के राजा के सत्प्रयत्नों से शालिभद्रसूरि एवं बलिभद्रसूरि में विवाद का अन्त हुअा एवं बलिभद्रसूरिजी को वासुदेवसूरि नाम दिया गया। वासुदेवसूरि के गच्छ का नाम हस्तिकुण्डीगच्छ रखा गया। इसके पश्चात् वासुदेवसूरि ने महावीर भगवान के मन्दिर में रेवती दोष के अधिष्ठायक देवता की स्थापना की। आपको प्राचार्य पदवी यहीं प्राप्त हुई। 1. इस राजा के समय का एक शिलालेख 1010 विक्रमी का पाहड़ में मिला है / आहड़ उदयपुर से पूर्व 2 मील दूर है। .