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________________ षष्टः सर्गः कियत् ? स्वल्पमित्यर्थः अर्थात् वेदोऽपि तम् किञ्चिदेव स्तोतुं शक्नोति न तु कात्स्न्येन / नृणाम् नराणाम् हृत्सु हृदयेषु साक्षिणि साक्षिभूते सर्वान्तर्वेदिनीति यावत् तस्मिन् इन्द्रे तमुद्दिश्येत्यर्थः अज्ञान न् अज्ञान विज्ञापयति बोधयतीति तथोक्तम् ( उपपद तत्पु० ) मम दमयन्त्याः अपि उत्तरम् प्रतिवचनम् मृषा व्यर्थम् / सर्वहृदयविज्ञः इन्द्रो ममापि हृदयं स्वयं जानात्येवेयम् नलेऽनुरज्यते इति तस्माद् व्यर्थ तं प्रति ममोत्तरदानमिति भावः // 91 // * व्याकरण-स्तुतौ----/स्तु + क्तिन् ( भावे ) / साहसिक्यम् इसके लिए पीछे श्लोक 8 देखिए / वेद -विद् + लट्, लट् को विकल्प से णमुल / साक्षिणि साक्षाद् द्रष्टा इति साक्ष + इन् ( 'साक्षाद् द्रष्टरि संज्ञायाम् 5 / 2 / 91 ) / विज्ञापि विज्ञापयतीति वि + ज्ञा + णिच् + णिन् / अनुवाद- हे इती! ) इन्द्र की स्तुति करने का साहस छोड़ दे। उनकी स्तुति करना यदि कोई जानता है, तो वेद (ही, अन्य नहीं ); वह भी कितनी? ( - बहुत कम ) / लोगों के हृदयों के साक्षी-भूत उन ( इन्द्र ) के प्रति अनजानों को ज्ञान कराने वाला मेरा भी उत्तर बेकार है / / 91 // टिप्पणी-ठीक है उत्तर उसी व्यक्ति को देते हैं, जो बात को नहीं जानता। सर्वान्तर्यामी होने के नाते भगवान् इन्द्र दमयन्ती के हृदय को स्वयं जानते ही हैं कि वह नल को चाहती है, फिर उन्हें वह क्या उत्तर देती ? उत्तर न देने का कारण बताने से काव्यलिङ्ग है / 'वेद' 'वेद' में छेक, अन्यत्र वृत्यनुप्रास है / आज्ञां तदीयामनु कस्य नाम नकारपारुष्यमुपैतु जिह्वा / प्रह्वा तु तां मूर्धिन विधाय मालां बालापराध्यामि विशेषवाग्भिः। 92 / / अन्वयः--कस्य नाम जिह्वा तदीयाम् आज्ञाम् अनु नकार-पारुष्यम् उपति ! तु प्रवा ( सती ) बाला ( अहम् ) ताम् मालाम् मूर्टिन विधाय विशेष वाग्भिः अपराध्यामि। टीका--करय नाम इति कोमलामंत्रणे जनस्य जिह्वा रसना वाणीत्यर्थः तदीयाम तत्सम्बन्धिनीम् ऐन्द्रीमित्यर्थः आज्ञाम् आदेशम् अनु लक्ष्यीकृत्य नकारस्य प्रतिषेधार्थकन-शब्दस्य पारुष्यम् रौक्ष्यं, कठोरतामिति यावत् उपैति प्राप्नोति न कस्यापीति काकुः तदाज्ञां प्रति 'न' इत्युक्त्वा न कोऽपि धाष्र्यमाचरिष्यतीति भावः / तु किन्तु प्रह्वा नम्रा सती बाला बालिका अहम् ताम् आज्ञा-रूपां मालाम्
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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