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________________ षष्ठः सर्ग. कालानाम्, सन्ध्यानां समाहारः यों समाहार द्विगु भी कर सकते हैं। कालात्यन्तसंयोग में इन्हें द्वितीया हो जायेगी' कृतघ्नीकृति अकृतघ्नं कृतघ्नं करोतीति कृतघ्न + च्चि + ईत्व + /कृ + क्तिन् ( भावे ) / कृतघ्नः कृतं हन्तीति कृत + हन् + क्तः ( कर्तरि ) औचिती उचितस्य भाव इनि उचित+ प + ङीप् यलोप / पतिष्यतः /पत् + शतृ ( भविष्यदर्थ में ) / अनुवाद-(हे दमयन्ती। ) जिन्हीं देवताओं को तुम तीनों कालों में प्रणाम किया करती हो, उन्हें कृतघ्न बना देना तुम्हारे लिए उचित नहीं / ( इन्द्रवरण के बाद ) भविष्य में तीन सन्ध्या कालों में तुम्हारे पैरों को प्रणाम करने वाले उन ( देवताओं ) को भी ऋण-मुक्त करने की कृपा करो // 85 // टिप्पणी-दमयन्ती द्वारा नित्य तीन 2 बार किये जाने वाले प्रणामों का भार देवताओं के सिर पर चढ़ा हुआ है। वे तेरे कृतज्ञ हैं। कृतघ्न नहीं होना चाहते / वे अपना भार तभी उतार पायगे जब तुम इन्द्र का वरण कर लोगी और नित्य इन्द्र को प्रणाम करने आये हुए वे लोग इन्द्राणी को छोड़कर बदले में तुम्हें प्रणाम करेंगे। इसी तरह वे तुमसे ऋणमुक्त हो सकेंगे। अतः कृपया इन्द्र का वरण कर लो। देवताओं को कृतघ्न मत बनने दो / यहाँ 'कृत' 'कृति' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। इत्युक्तवत्या निहितादरेण भैम्या गृहीता मघवत्प्रसादः / स्रक्पारिजातस्य ऋते नलाशां वासैरशेषामपुपूरदाशाम् / / 86 // अन्वयः- इति उक्तवत्या ( दूत्या ) निहिता भैम्या ( च ) आदरेण गृहीता मघवत्प्रसादः पारिजातस्य स्रक वासैः नलाशाम् ऋते अशेषाम् अपुपूरत् / टीका-इति उक्तप्रकारेण उक्तश्त्या कथितवल्या इन्द्रदूत्या निहिता उपनीता समर्पितेति यावत्, भैम्या दमयन्त्या च आदरेण सादरम् गृहीता स्वीकृता मधवतः इन्द्रस्य प्रसादः अनुग्रह-रूपा ( 10 तत्पु० ) पारिजातस्य स्वर्गस्थ-वृक्षविशेषस्य पुष्पाणाम् स्रक माला वास: परिमलैः नलस्य आशाम् आशंसाम् ऋते विना अशेषाम् न शेषो यस्यां तथाभूताम् ( नञ् ब० वी० ) निखिलाम् आशाम् ( जातावेकवचनम् ) सर्वाः दिशः इत्यर्थः अपुपूरत पूरयामास / पारिजातसौगन्ध्येन सर्वाः आशाः ( दिशाः ) पूरिता, नलस्याशा (तृष्णा) तु न पूरिता ( आशा तृष्णा-दिशोः इति विश्वः ) / इन्द्रप्रेषितमालां स्वीकृत्य 'एषा इन्द्रमेव वरिष्यति, न तु माम्' इति शङ्कित्वा नलो निराशोऽभवदिति भावः // 86 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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