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________________ षष्ठः सर्गः टोका-(हे दमयन्ति ) त्वम् एनम् इन्द्रम् न त्यज मुञ्च / यैः अमरे: देवैः क्षीरधेः क्षीरसमुद्रस्य मन्थनात् मथनात् (10 तत्पु० ) अस्य इन्द्रस्य अनुजाय कनीयसे भ्रात्रे उपेन्द्राय विष्णवे इति यावत् श्रीः लक्ष्मी उद्गमिता समुद्रात् उद्गन्तुं प्रेरिता निस्सारितेति यावत्, क्षीरसागरं मथित्वा ततः उद्गतां लक्ष्मीम् इन्द्राय देवा ददुरित्यर्थः, ते अमराः इक्षुरसः एव उदकं जलं यस्य तथाभूतम इक्षुरससमुद्रमित्यर्थः (ब० वी० ) विमथ्य मथित्वा अन्याम् श्रियम् क्षीरसागरमथनोद्गतश्रीभिन्नाम् लक्ष्मीम् उत्थापयितुम् उद्गमयितुम् न श्राम्यन्तु न क्लाम्यन्तु ज्यायसे भ्रात्रे इन्द्राय क्षीरसागरोत्थलक्ष्म्यपेक्षयाऽधिकसुन्दरी अन्या लक्ष्मी समपेक्ष्यते तदर्थं देवः इक्षुरससागरस्य मन्थनं कर्तव्यं स्यात् तच्च महाश्रमस्य कार्यमिति कृत्वा त्वमेव इन्द्र वृणीष्व विष्णुलक्ष्म्यपेक्षया तवाधिकसुन्दरत्वादिति भाव: / / 80 // ___ व्याकरण-- क्षीरधिः क्षीराणि धीयन्तेऽत्रेति क्षीर + Vघा + किः ( अधिकरणे ) / अनुजः अनु = पश्चात् जायते इति अनु + जन् + ड: ( कर्तरि ) उद्ग. मिता उत्/गम् + णिच् + क्त ( कर्मणि ) / अमरेः म्रियन्ते इति/मृ + अन ( कर्तरि ) मराः न मरा इत्यमराः / नत्र तत्पु० ) / इक्षुरसोकः इक्षरस + उदक, उदक को उदादेश ( संज्ञायाम् ) / उत्थापयितुम्-उत् + /स्था + णिच् + तुमुन् / ___ अनुवाद--( हे दमयन्ती ! ) तुम इन्द्र को मत छोड़ना / जिन देवताओं ने क्षीरसागर के मन्थन से इन ( इन्द्र ) के छोटे भाई (विष्णु ) हेतु लक्ष्मी निकाली है, वे इक्षुरस-सागर को मथकर दूसरी लक्ष्मी निकालने का श्रम न करने पावें / / 80 / / टिप्पणी-बड़े भाई होने के नाते इन्द्र की पत्नी अधिक ही सुन्दर होनी चाहिए। लक्ष्मी यदि क्षीरसागर से निकली है, तो क्षीरसागर से अधिक मीठा इक्षुरसागर ही है, जिसे मथकर ही अधिक सुन्दर दूसरी लक्ष्मी मिल सकती है / यह देखो तो महान् परिश्रम का काम है। तुम लक्ष्मी से अधिक सुन्दर हो ही, अतः तुम ही इन्द्र को अपना लो, तो देवताओं का श्रम बच जाएगा / मल्लिनाथ के अनुसार यहाँ देवताओं के साथ दूसरी लक्ष्मी निकालने के प्रयत्न का असम्बन्ध होने पर भी सम्बन्ध बताया गया है, अतः असम्बन्धे सम्बन्धातिशयोक्ति है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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