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________________ 548 नैषधीयचरिते अनुवाद-जगत् के स्वामी नल ने दमयन्ती के विषय में हुई अपने दूतत्व की सभी सचाई तीनों लोकों के लोगों में घटे निखिल वृत्तान्त के साक्षात्कार करने में निपूण इन्द्रादि देवताओं के पास खेद के साथ सही सही ढंग से कह डाली // 159 // टिप्पणो–'भूतं भूत' 'गत्या गत्याः' 'तत्वतत्त्वम्' 'वृत्तवृत्ता' में छेक, 'कृतिकृति' में 'यमक' अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास / 'स्वात्मदूतत्व'-यहाँ स्व और आत्मा दोनों पर्याय-शब्द होने से एक शब्द अधिक है अतः अधिकपदत्व दोष बना हुआ है। 'छन्द यहाँ 15 अक्षरों वाला मालिनी है जिसका लक्षण इस तरह है'ननमयययुतेयं (न, न, म, य, य ) मालिनी भोगिलोकैः' ( आठ और सात में यति).॥ 159 // श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं - श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् / संहब्धाणंववर्णनस्य नवमस्तस्य व्यरंसीन्महा काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते सर्गो निसर्गोज्ज्वलः // 160 // अन्वयः-कविराज 'यम् (पूर्ववत् ) संदृब्धार्णववर्णनस्य तस्य चारुणि नैषधीयचरिते महाकाव्ये निसर्गोज्ज्वल: नवमः सर्ग व्यरंसीत् / टोका-कविराज''यम् ( पूर्ववत् ) संहब्धः ग्रथितः ( 'ग्रथितं ग्रन्थितं दृब्धम्' इत्यमरः ) 'अर्णववर्णनः' अर्णवस्य समुद्रस्य वर्णनं ( . तत्पु० ) यस्मिन् तथाभूतः (ब० वी०) एतदाख्यो ग्रन्थ: येन तथाभूतस्य ( ब० वी० ) तस्य श्रीहर्षस्य महाकवेः चारुणि रम्ये नैषधीयचरिते महाकाव्ये निसर्गोज्ज्वलः नवमः सर्गः व्यरंसीत् समाप्तः / इति मोहनदेवपन्तशास्त्रि-प्रणीतायां 'छात्रतोषिणी'-टीकायां नवमः सर्गः / अनुवाद-जिसको जन्म दिया ( पूर्ववत् ) 'अर्णव-वर्णन' के निर्माता उस (श्रीहर्ष ) के सुन्दर 'नैषधीयचरित' महाकाव्य का निसर्गतः उज्ज्वल नौवां सर्ग समाप्त हुआ। टिप्पणी-श्रीहर्ष द्वारा प्रणीत 'अर्णववर्णन' ग्रन्थ के सम्बन्ध में भूमिका देखिए // 160 // 'नैषधीयचरित' के नौवें सर्ग का अनुवाद और टिप्पणी समाप्त /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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