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________________ नवमः सर्गः 493 विलासेन चलम् चञ्चलम् विधेहि कुरु, अपाङ्गः नेत्रपान्तः एव रथ्या मार्गः ( कर्मधा० ) तस्याः पथिकीम् अध्वगामिनीम् (10 तत्पु० ) दृशम् दृष्टिम् च प्रसद्य प्रसन्नीभूय हेलया विलासेन मम उपरि मयि संघेहि संयोजय सविलासम् मयि कटाक्षपातं कुविति भावः // 111 // व्याकरण-स्मितस्य स्मि + क्त (भावे ) / संभावय सम् + /भू + णिच् + लोट् / चलम् चलतीति /चल + अच ( कर्तरि ) / रथ्याः रथम अहंतीति रथ + यत् + टाप् / पथिकीम् पन्थानं गच्छतोति पथिन् + ष्कन् + ङीष् / हेलया /हेड् + अ + टाप, ड को ल। __ अनुवाद-“( ओ दमयन्ती!) ओठों के कोने से थोड़ी-सी मुस्कानें * दिखाओ; भौंह के कोने को विलास से चञ्चल बनाओ और प्रसन्न होकर नयनों की राह से विचरने वाली निगाह हाव-भाव के साथ मेरे ऊपर संजोओ" // 111 // टिप्पणी-हेलया यद्यपि साधारणतया हेला, अवहेला, अवहेलना आदि हेड् से बने शब्द अनादर-बोधक होते हैं, तथापि साहित्य में इसका पारिभाषिक अर्थ होता है जिसे दपणकार ने इस तरह स्पष्ट किया है-हेलाऽत्यन्तसमालक्ष्यविकारः स्यात् स (भावः = निर्विकारात्मके चित्ते भावः प्रथम विक्रिया) एव तु // अर्थात् अच्छी तरह व्यक्त हुआ काम-विकार, जिसे उर्दू में अदा या नजाकत भी कहते हैं। यहाँ अपाङ्ग पर रथ्यात्व और दृष्टि पर पथिकीत्वारोप में रूपक है, जो कायं कारण भाव सम्बन्ध होने से परम्परित है। विद्याधर उपमा भी कह रहे हैं, जो हम नहीं समझे / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है // 111 // समापय प्रावृषमस्रुविप्रुषां स्मितेन विश्राणय कौमुदीमुदः। दृशावितः खेलतु खञ्जनद्वयी विकासि पङ्केरुहमस्तु ते मुखम् // 112 // अन्वयः-( त्वम् ) अश्रु-विप॒षाम् प्रावृषम् समापय; स्मितेन कौमुदी-मुदः विश्राणय; दृशी खञ्जनद्वयी इतः खेलतु; ते मुखम् विकासि पङ्केव्हम् अस्तु / टीका-त्वम् अश्रूणाम् वाष्पस्य विप्रुषाम् बिन्दूनाम्, प्रावृषम् वर्षर्तुम् समापय समाप्ति नय, अश्रुप्रवाहं निवारयेत्यर्थः, स्मितेन ईषद्धासेन कोमुद्याः चन्द्रिकायाः मुदः मोदान आनन्दानिति यावत् ( 10 तत्पु० ) विश्राणय देहि, ईषद्धसित्वा मामानन्दयेत्यर्थः, दृशौ नयने एव खजनयोः खञ्जरीटयोः पक्षिविशेषयोरिति यावत् द्वयो द्वयम् (10 तत्पु० ) इतः अत्र मयीत्यर्थः खेलतु क्रीडतु
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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