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________________ 476 नैषधीयचरिते टीका-वा अथवा अह्नि च दिवा चेति ( द्वन्द्व ) अहर्दिवम् प्रत्यहम् मम एव अभूणि अश्रुधारा एव दुदिनानि मेघाच्छन्नदिवसाः तः ( कर्मधा० ) ( 'मेघच्छन्नेह्नि दुर्दिनम्' इत्यमरः ) प्रसह्य बलात् यथा स्यात्तथा वर्षासु ऋतौ वर्षौ ('स्त्रियां प्रावृट् स्त्रियां भूम्नि वर्षाः' इत्यमरः ) प्रसञ्जिते प्रवतिते सति देवताः सषप्य सम्यक् सुप्त्वा स्वपन्त इत्यर्थः मे मम दमयन्त्याः गिरः वाणीः कथम् केन 'प्रकारेण न इति पृच्छायाम् शृण्वन्तु आकर्णयन्तु, न कथमपीत्यर्थः अतः मे गिरः अरण्ये बने सदितम् रोदनम् ( अलुक् स० ) निष्फलवचनमित्यर्थः कथम् न भवतु स्यात् ? अपि तु भवत्वेति काकुः // 96 // व्याकरण-वर्षासु ऋतौ 'ऋत्यकः' ( 6 / 1 / 128 ) से प्रकृतिभाव / प्रस. जिते प्र + /सङ्ग् + णिच् + क्त ( कर्मणि ) / देवताः देवा एवेति देव + तल् ( स्वार्थे ) + टाप् / सुषुप्य सु + /सुप् + ल्यप्, षत्व / अरुण्यक्तिम् 'क्षेपे' ( 2 / 1147 ) से निन्दार्थ में समास, 'तत्पुरुषे कृति बहुलम्' ( 6 // 3 // 14 ) से विभक्ति-अलुक् / गिरः न भवतु ? विधेय-भूत अरण्येरुदितम् की प्रधानता से एक वचन / भवतु संभावना में लोट् / अनुवाद-"अथवा रात-दिन मेरे ही अश्रुओं-रूपी मेघावृत दिनों द्वारा बलात् वर्षा ऋतु के आरम्भ किये जाने पर देवता लोग खूब सोते हुए मेरे वचनों को सम्भवतः कैसे सुनें ? ( इसलिए ) वह अरण्य-रोदन कैसे न हो ? // 16 // __ टिप्पणी शास्त्रों के कथनानुसार वर्षा ऋतु में देवता लोग सो जाया करते हैं। वह उनकी रात होती है ज्योतिष भी कहता है-'वर्षर्तुर्देवरजनी'। जब रात हो जाने से वे निद्रा में सोपे पड़े हैं, तो मेरे करुण वाक्यों को कैसे सुन सकते हैं ? यह मेरा ही दोष है / मैं न रोती, तो वर्षा-ऋतु न लाती, न मेरा रोना-चिल्लाना अरण्य-रोदन सिद्ध होता। विद्याधर के अनुसार अश्रुओं पर दुदिनत्वारोप में रूपक है। मल्लिनाथ के अनुसार उस समय वर्षा ऋतु का तथा देवताओं के सोने के साथ असम्बन्ध होने पर भी सम्बन्ध बता देने से दो अतिशयोक्तियाँ हैं जिनका दमयन्ती के वचनों का 'अरण्यरुदितमिव' यों सादृश्य में 'पर्यवसान होने से निदर्शना के साथ संकर है। न सुनने का कारण बताने में काव्यालङ्ग भी है। 'दिन' दिनैः' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 96 / /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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