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________________ नवमः सर्गः 457 बिभ्रतीति तथोक्तानाम् ( उपपद तत्पु०) भूपतीनाम् न छत्राणि उपरितना आवरकभागाः येषां तथाभूताः ( नन् ब० वी० ) ये दण्डाः छत्रयष्टयः ( कर्मधा० ) तेषाम् ताण्डवम् उग्रनृत्यम् (10 तत्पु० ) यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात्तथा (ब० बी० ) अथ च भुजाभ्यां-भुजाभ्यां प्रवृत्तं यस्मिन् कर्मणि यथा स्यात्तथा (ब० वी० ) च मधम् संख्यं युद्धमिति यावत् ('मृधमास्कन्दनम् संख्यम्' इत्यमरः) त्वम् दिदृक्षसे द्रष्टुमिच्छसि किम् ? शच्याः संनिधानाभावे राज्ञां परस्परं दण्डा. दण्डि मुजाभुजि संघर्ष त्वं द्रष्टुमिच्छसि न पुनः स्वस्वयंवरं किमिति भावः // 79 // व्याकरण-रोषात्/रुष +घञ् ( भावे ) / वृत्तान्तः वृत्त (वृत्+क्त)+ अन्तः अजानताम् न + Vज्ञा + शतृ ष० ब० / भृताम्/भृ + क्विप् ( कर्तरि) ष० ब० / भुजाभुजि-'तत्र तेनेदमिति सरूपे' ( 2 / 2 / 27 ) से समास + इच ( कर्मव्यतिहारे ), दीर्घ, 'तिष्ठद्गुप्रभृतीनि च' (22111! ) से अव्ययत्व / दिदृक्षसे दृश् + सन् + लट् 'ज्ञा-श्व--स्मृ-दृश- स्वनः' (1 / 3 / 57) से आत्मने / अनुवाद-"क्रोध-वश परस्पर कठोर वचन निकालते हुए अपने मुख के वृत्तान्त से अनवगत राजाओं का विना छत्र के दण्डों का ताण्डवनृत्य अर्थात् डंडा-डंडी तथा हत्थम्-हत्थी लड़ाई देखना चाह रही हो क्या" // 79 // टिप्पणी-इस श्लोक में भी कवि पिछले श्लोक की तरह ही शची की अनुपस्थिति में होने वाले विघ्नों का उल्लेख दोहरा रहा है / एक-दूसरे के लिए अपशब्द निकल रहा है-इसे कुछ भी खबर न रखे राजाओं में संघर्ष छिड़कर ही रहेगा। पहले तो शस्त्रों का प्रयोग होगा। शस्त्रों से एक-दूसरे के छत्र टूटकर गिरते जाएंगे तो वे छत्र का डंडा ही लेकर भिड़ जाएंगे। डंडा भी टूट जाएगा, तो उनमें हत्थम्-हत्थी, गुत्थम्-गुत्थी लड़ाई चल पड़ेगी, जिसे बाहु-युद्ध कहते हैं। विद्याधर ने यहाँ छेकानुप्रास कहा है / 'भुजाभुजि, भुजां' में तो छेक हो नहीं सकता है, क्योंकि वर्षों की एक से अधिक वार आवृत्ति हो रखी है। हाँ 'दण्ड, ताण्ड' में 'ण इ' की आवृत्ति में छेक हो सकता है। अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / / 79 // अपार्थयन्याजकफूत्कृतिश्रमं ज्वलेद्रुषा चेद्वपुषा तु नानलः / अलं नलः कर्तुमनग्निसाक्षिकं विधि विवाहे तव सारसाक्षि ! कम् ? // 8 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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