________________ नैषधीयचरिते चिरादनध्यायमवाङ्मुखी मुखे ततः स्म सा वासयते दमस्वसा / कृतायतश्वासविमोक्षणाथ तं क्षणाद्वभाषे करुणं विचक्षणा // 61 // अन्वयः-ततः सा दमस्वसा अवाङ्मुखी ( सती) मुखे चिरात् अनध्यायम वासयते स्म / अथ कृत "क्षणा विचक्षणा क्षणात् तम् करुणम् बभाषे।। टोका-ततः तदनन्तरम् सा दमस्य स्वसा भगिनी (प० तत्पु० ) दमयन्ती अवाक चिन्ता-कारणात् नीचः यथा स्यात्तथा मुखम् वदनं ( सुप्सुपेति समासः) यस्याः तथाभूता सती (ब० वी०) मुखे वाचि चिरात् चिरकालम् अनध्यायम् अध्यायः पठनम् उच्चारणम्, न अध्याय इति अनध्यायः ( नन तत्पु० , न किमपि कथनं मौनमिति यावत् वासयते स्म वासं कारितवती चिरं तूष्णीं बभूवेत्यर्थः / अथ पश्चात् कृतम् विहितम् आयतश्वास-विमोक्षणम् ( कर्मधा० ) आयतस्य दीर्घस्य श्वासस्थ निःश्वसितस्प ( कर्मधा० ) मोक्षणम् विमोचनम् (10 तत्पु०) यया तथाभूता (ब० बी०) विचक्षणा चतुरा दमयन्ती क्षणात् क्षणानन्तरम् तम् नलम् करुणम् दैन्यपूर्वकम् यथास्यात्तथा बभाषे कथया मास / कियकालम् मुखं मौनं निधाय चिन्तातुरा सा क्षणात् प्रत्युत्तरवतीतिभावः // 63 // व्याकरण-अवाक अव + V अञ्च + किन् / अध्यायः अधि + ईङ् + धअन्त निपातित ( 3 / 3 / 122) / वासयते स्म वस् + णिच् + लट्, कर्तृगतक्रियाफल में आत्मने / बिचक्षणा विचष्टे इति वि+चक्षिन + युच + युको अन, न को ण + टाप, ख्यादेश का प्रतिषेध / मोक्षणम्/ मोक्ष + ल्युट ( भावे)। अनुवाद-तदनन्तर वह दमयन्ती मुख नीचे किए देर तक चुप्पी साधे रही। बाद को लम्बी आह खींचे हुए वह चतुर लड़की क्षणभर में दीनता पूर्वक उन (नल) को बोली / / 61 // टिप्पणी-विद्याधर ने यहां उपमा कही है, जो हमारी समझ में नहीं आ रही है। यहाँ भावोदयालंकार है क्योंकि मुख नीचा करना, लम्बी आहे भरना और दीनता चिन्ता के अनुभाव होते हैं। मुखी, मुखे, में छेक, क्षणा, क्षणा, क्षणा में यमक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / करुणं नारायण 'करुण' में 'अकरुण' सन्धिच्छेद करके अर्थ में यह विकल्प रख रहे हैं कि वह अकरुण कठोरता के साथ बोली। पिछले श्लोक में दमयन्ती को नल के यह कहने पर कि वह